Sunday 3 November 2013

दीप का उजाला



दीप का उजाला

एक छोटा सा दीप 
छोटी सी बाती घी से लतपत
मानो जब भी जले
कर देता उजाला जीवन में
उसकी मंद रोशनी
ना जाने क्यों झिलमिलाती है
शांत हो जाता है मन हमारा
दिल को सुकून सा मिल जाता है

ये माटी का दीप
इसकी रचना है कोमल   
जिसके सौन्दर्य को देख
आखों में उजाला आजाता
न मालूम ये है कितना प्राकृतिक
न मालूम ये है कितना धीर
किन्तु यह हमारा मन मोह लेता है

दीप कि लो
पटाखों के जबरजस्त शोर में
हवा के झोके में भी
नहीं डग मगता है
अनार की रोशनी में
भी जरा नहीं सहमता
थोड़ा-सा झुकता है
और फिर तैयार हो जाता है
जगमगाने के लिए
स्नेहदीप के साथ ये
हमारे जीवन को रोशन करता है
मुबारक हो दीपावली का त्यौहार।

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