पैरों
तले ज़मीन है???...
सूरज
की लाली
चिड़ियों
की चहक
फूलो
की सुगंध
हवा
का झोका
नदी
का बहना
यह
नज़ारे मन मोहलाते है
फिर
भी व्याकुल है मन
ना
हाथ में गिल्ली-डंडा, ना सीस पाती
ना
कहानी कहने, ना सुने वाला
ना
खेलते कब्बडी,ना खोखो
ना
रसि कुदते, ना जाते क्रीड़ावन
ना
ज्ञान है भाषा का, ना संस्कृति का
ना
धर्म है, ना शिष्टाचार
मानो
संस्कार भी छूट से गए है
बचपन
कही खो गया है
दीमक
लग गई है उनकी विरासत में
आप
मानो या ना मानो
पैरों
तले ज़मीन खसकती जा रही है……….
बच्चे
भटक गए है राह से
वो
कर लेंगे आत्मसात
मोबाइल,
ऐप और इंटरनेट के फॉर्मूले
वो
वंचित रहेंगे जिंदगी जीने से
बैंक
बैलेंस तो अथाह होगा
ना
होंगे रिश्ते, ना होगी महक रिश्तो की
अभी
भी समल जाओ
रोक्लो
इस मायाजाल को……….
पैरों
तले ज़मीन खसकती जा रही है……….
कर
लो प्रतिज्ञा
ये
उत्तरदायित्व है आपका
रूबरू
कराओ उनको उनकी विरासत से
देश
के भावी खेवनहार है
दे
दो बचपन की महक उनको
पैरों
तले ज़मीन खसकती जा रही है……….