एक बुढ़िया
कहीं एक बुढिया थी जिसका
नाम नहीं था कुछ भी,
वह दिन भर खाली रहती थी
काम नहीं था कुछ भी।
काम न होने से उसको
आराम नहीं था कुछ भी,
दोपहरी, दिन, रात, सबेरे
शाम नहीं थी कुछ भी।
*** निरंकारदेव ‘सेवक’***
काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है ‘एक बुढ़िया’। इस कविता में कवि ने एक ऐसी बुढ़िया के बारे में बताया है, जिसके पास कोई काम न था। वह दिनभर खाली रहती और कोई काम नहीं करती थी। काम रहने के कारण वह दिनभर बैठी रहती और थक जाती थी। इसलिए उसे आराम भी नहीं था। काम न रहने के कारण उसके लिए सुबह, दोपहर, शाम और रात सब बराबर थे।
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