में आत्मा हु ???
में भी शरीर की कैद
में हु...
छटपटा रही है आत्मा
मानो पकड़ बहुत मजबूत
है
पर निकल नहीं पाती
माया की बेड़ियो में
रिश्तो के जंजाल में
मोहब्बत के फ़सानो से
मानो उसे निकल ने नहीं
देती
सांसारिक सुख-दुःख की कल्पना में
राग-द्वेष की आकुलता
में
क्रोध-मान में जकड़ा
हुआ है
वह परम विशुद्ध है
मानो वह निकल ना नहीं
चाहता है
बहुत मुशकिल सवाल है...
में आत्मा हु ???
दिल में उलझता सवाल
है ..
में आत्मा हु ???
जवाब है विश्वास करना नहीं चाहता
क्यों
नहीं समझता
"शरीर ज्ञेय है"
"आत्मा अनादी अनन्त है"
में नातो शरीर हु, नातो मन हु
में नातो इन्द्रिय हु, नातो पंचतत्व हु
में नातो मित्र हु, नातो रिश्तेदार हु
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु
ना मुझे वेर है, ना प्रेम है
ना मुझे मोह है, ना अभिमान है
ना मुझे मृत्यु का डर है. ना जन्म का
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु
में धर्म से, धन से, लालसा से पृथक हु
में सभी बंधनो से स्वतंत्र हु
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु
आत्मा तो सिर्फ “ज्ञाता द्रष्टा” होती है