Wednesday 30 October 2013

हाथ से फिसल रहा है वक्त



हाथ से फिसल रहा है वक्त
जन्म से लेकर अब तक
न मालूम क्या-क्या पाया  
जब-जब सोचु में    
कई सवालो से घिरा पाया 
कई यो के जवाब पालिये  
कई सवाल नासूर बन गए   
कई के जवाब का इंतजार 
जब पन्ने पलता हूँ जिंदगी के 

जन्म से लेकर अब तक
न मालुम जिंदगी से मेने क्या पाया  
जब जब में सोचता हु अपने बारे में
कई सवाल है मेरे मन में
जिसका जवाब आज तक नहीं मिला
जब पन्ने पलट कर देखता हु
एक बार फिर से जिंदगी के
तो लगता है फिसल चूका है वक्त

बचपन गुजर चूका है
कभी खेल में तो कभी मस्ती में
कभी लड़ने में तो कभी मनाने में
कभी सोने में तो कभी जागने में
कभी लम्बी दौड़ में
तो कभी इछाओ को पुरा कर ने में
कभी ख़ुशी में तो कभी गम में
न मालूम इन सब में बचपन हाथ से निकल गया
हमारा वक्त हाथ से निकल गया

जवानी आई और आदि गुजर गई
कभी कमाने में तो कभी सेटल करने में  
कभी पाने में तो कभी खोने में
कभी न समजा में
कभी रिश्ते को बुनने में
तो कभी रिश्ते को निभाने में
न मालूम यह वक्त कहा निकल गया

इस भागती दौड़ में
क्यों बिखर गई यादे 
क्यों फिसल रहा है वक्त
क्यों दूर हो रहे है अपनों से
क्यों कर रहे है बार बार वही गलती
ना जानते है, ना जान सकते है
लाख कोशिश के बाउजूद
हम वक्त को रोक नहीं पाये
जैसे मुटी में रखी रेत के समान है वक्त
जो हाथ से फिसल जाता है
उसी तरह जिंदगी भीकर जाती है
में फिरसे अकेला हो जाता हु
और वक्त कहा निकल जाता है

एक नए सफ़र कि तलाश में
नए सपनो को बुनने का वक्त आगया है
फिर से नई आशाए जगानी है मन में
नए विशवास के साथ
हमें धन्यवाद देना है वक्त को
जिसने मेरा इतना साथ दिया
कुछ खट्टी मीठी यादों में 
कई खवाइश है दिल में
उनको पूरा कर ने का वक्त आगया है
आशा करता हु सपने होंगे पुरे
और इसी तरह यह वक्त भी गुजर जायेगा

Tuesday 29 October 2013

कहाँ आ गए हैं

मत छीनो ये बचपन
न मालूम कब बीत जायेगा
भूल गए है खेलकूद
न मालूम कब खेल पायेगा
फस गया है इछाओ के भवर में
न मालूम कब निकल पायेगा  
मत थोपो हसरते उनके कंधो पर
थक गया है यह बचपन
न मालूम कब सम्भलपायेगा
यदि ये बचपन बिगड़ गया
न मालूम कब सवर पायेगा 
कहा चला गया है बचपन
कहाँ आ गए हैं

यह युग है टेक्नोलॉजी का
इन्टरनेट ने किया अचंभित
मच गया कोहराम
बच्चे-युवा हुए दीवाने
ये आगाज है नए विश्व का
बन गए है गुलाम
वे अनजान है इस विश्व से 
न जाने कब से
रोक लो उन्हें 
थामलो उनका हाथ
ये इंटरनेट कहीं ले न डूबे...!
कहाँ आ गए हैं



क्यों भूल गया रिश्ते-नाते
न मालूम कब समझेगा
क्यों भाग रहा है पैसे के पीछे
न मालूम इस अंधी दौड़ मे
बीत गई ज़िंदगी कमाने में
न आएगा पैसा काम
अभी भी वक्त है तू समलजा
कही ये तुझे निगल ना जाये
कहाँ आ गए हैं

निकले है सफ़र पर कब से
ना मंजिल का ना घर का पता है
न मालूम यह सफर कब थमेगा
क्यों भाग रहा है बंद आखो से
क्यों है विश्वास स्वयं पर
क्यों भुल जाता है स्व को  
न मालूम कब जान पायेगा
भय है जैसे मौत का
न मालूम कब थम जाये
कहाँ से सफ़र शरू हुआ था
कहाँ आ गए हैं

कितने खुश, कितने नाखुश?

कितने खुश, कितने नाखुश?

कितने खुश, कितने नाखुश?
जीवन में खुशिया अपना ही रंग दिखाती है
कभी हैं ग़म तो कभी खुशियां
कुछ खुशिया बिना मांगे
तो कुछ ढूंढनी पड़ती है
कुछ का हम इंतजार करते है
तो कुछ समय से पहले ही दम तोड़ देती है
खुशिया पाने की ख्वाहिश हम सब में है
कैसे पहिचाने खुशिया भी है या नहीं

जितना हम जानते है दुनिया को

क्या उतना ही कम जानते है अपने बारे में

परेशानियों के बिच हम घिरे हुए है

नाखुशियो का दामन हमने थामा है


क्यों नाखुश है??

उलझता हुआ सवाल है दिल में

नाखुश है स्वयं से,

क्या समज पाए है खुद को

नाखुश है रिश्ते-नाते से,

क्या समज पाए है रिश्तो को

नाखुश है कामकाज से,

क्या एहसास है काम के उद्देश का

नाखुश है द्रष्टिकोण से,

क्या समज पाए है खुद का नजरिया

नाखुश है जीवन से,

क्यों पसंद है जीवन जैसा भी है

नाखुश है निराशाओ से,

क्यों भुल नहीं पाते है कड़वाहट को

नाखुश है वर्तमान से,

क्या खुशहाली एक रास्ता है मंजिल नहीं

आखिर क्यों हम इतने नाखुश है

यह वक्त है न तो खुशियों को चुनने का

और न खुशियों के पीछे भागने का है

न तो खुशिया बाहर है

न ही यह मंजिल है

बंद करो पीछा करना खुशियों का

पाओ गे तुम स्वयं को खुला

और वर्तमान समय में

सुनो अपनी अंतरात्मा की आवाज

जब तुम अपने को जान लोगे

सारा जीवन मानो खुशहाल सा लगेगा

भगवान कहा से हो



भगवान कहा से हो

 

सब्जी हो गई रासायनिक, स्वाद कहा से हो 

फसल हो गई ख़राब, अनाज कहा से हो

भोजन हो गया मिलावट का, ताकत  कहा से हो

पानी हुआ गन्दा, फ़िल्टर कहा से हो

फुल हुआ आर्टिफीसियल, सुघंद कहा से हो

पुलिस हुई मकार, चोर कहा से हो

कंप्यूटर में लग गया वायरस, फाइल कहा से हो

चेनल हुए बेईमान, अच्छे सीरियल कहा से हो

गवर्मेंट कर्मचारी हो गए मठे, काम कहा से हो   

मास्टर हुआ ट्यूशन खोर, विध्या कहा से हो

इंसान हो गया स्वार्थी, यकीन कहा से हो

आकांक्षा बढती जाये, संतोष कहा से हो

सोच हो गई गलत, दूर कहा से हो

भगवान कहा से हो, 2……………………

 

जीवन का यह प्रश्न है,  भगवान कहा से हो

जीवन हो गया दुखो से भरा, सुख कहा से हो

भक्ति किसकी हो,  जो भक्तों से कहे

संत हुए लोभी, धर्म कहा से हो

भक्त हुआ स्वार्थी, भगवान कहा से हो

भगवान तो हर जगह है,  एतबार कहा से हो

भगवान तो हमारे रोम रोम मे बसते है, विशवास कहा से हो
भगवान कहा से हो, 2……………………

 

भगवान क्या कुछ देता है



भगवान क्या कुछ देता है


छोटी सी है तमन्ना मेरी मेरा काम करा दे
अगली क्लास दिला दे मुझ को पास करा दे
बैंक से लोन दिला दे मेरा महल बनवा दे
गर्मी दूर कर दे ए सी का इंतजाम करा दे
सोना चांदी का भाव गिरा दे मुझ को सोना चांदी दिला दे
मेरा प्रमोशन करा दे मुझ को मोटर कार दिला दे
में फेसबुक चला सकु मुझ को इन्टरनेट दिला दे
में चाटिंग कर सकु मुझ को मोबाइल दिला दे
मेरी लाटरी का नंबर लगा दे मुझ को माला मॉल बना दे
मेरे पास न भटके दुखों का साया मुझ को सुखी बना दे
में राज करू मुल्क पर मुझ को डॉन बना दे
मेरे कुछ पल कटे पूजा-आराधना में फिर चाहे मेरी जान लेले
ये महिमा है उस मनुष्य की
जो भिकारी बनकर दर-दर भटक रहा है 
अपनी न समझी पर न जाने
मानो क्यों बहुत खुश हो रहा है 

हे मुर्ख तु क्या जाने भगवान की महिमा
भगवान न कुछ देते है, न लेते है और ना वो कर्ता है
ना तुम्हे शुभ असुभ की बोध है
ना तुम्हे मोहा-राग-देवश की चिंता है 
ना तुम्हे कोई कर्म आते है और ना जाते है 
ना तुम सुख के साथी हो, ना दुःख के साथी हो
ना तुम गलत देखते हो, ना गलत सुनते हो
ना गलत बोलते हो, ना कुछ दे सकते हो  
तुम तो इस संसार के जाल से मुक्त हो गए हो 
तुम तो सिर्फ अपने स्वरूप में ही लीन हो
तुम ने तो जो उपदेश दिया है मोक्ष मार्ग का
जिस को सुनकर और समझ कर
मेने यह निश्चय किया, तुम्हारे सामान बस बनना
और अपनी आत्मा का कल्याण करना

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...