Tuesday 29 October 2013

कैसे में मन बहलाऊ



कैसे में मन बहलाऊ


हाथ में रखी रेत के समान है वक्त

जो निकल जाता है बस में  देखता रहता हु

कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

मुझे न सुबह का होश है और न शाम का
टालम टोली कर के निकाल  देता हु वक्त
कब मृत्यु आजाये ये कहता रहता हु
कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

आकांक्षा की कोई कमी नहीं है
हमारे पास कुछ होता तो हम बहुत कुछ चाहते है 
बहुत कुछ होता तो सब-कुछ चाहते है 
और उसकी कोई सीमा नहीं है
कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

क्यों नहीं दुंद ता हु में महरम
जिससे यह रोग मेरा दूर होजये
अपने इन घावों के लिए
 जिसे मे खून के आँसू से नहलाता हूँ
कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

सुख-दुख का जैसे ताता लगा हुआ है

अकेले बैठ कर मन मेरा सोचा करता है

क्यों व्यर्थ कर रहा हु  अपना मनुष भव

कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

 

यह जीवन बहुत संघर्षो से मिला है

यह अनमोल निधि है

जो कर ना है मुझ को अभी करना है

कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

यह अति  पूण्य अवसर मुझे मिला है
जिन धर्म के मार्ग पर चलने का
जिनवाणी को सुनने का
जिससे मेरा जन्म सफल हो जाये
कैसे में मन बहलाऊ, सोच ता रहता

No comments:

Post a Comment

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...