छत के नीचे,
पाँव पसारे,
पूँछ सँवारे।
देखो कोई,
मौसी सोई,
नासों में से.
साँसों में से।
घर घर घर घर हो रही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
बिल्ली सोई,
खुली रसोई,
भरे पतीले,
चने रसीले।
उलटो मटका,
देकर झटका,
जो कुछ पाओ,
चट कर जाओ।
आज हमारा दूध दही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
मूंछ मरोड़ो,
पूँछ सिकोड़ो,
नीचे उतरो,
चीजें कुतरो।
आज हमारा,
राज हमारा,
करो तबाही,
जो मनचाही।
आज मची है,
चूहा शाही,
डर कुछ भी चूहों को नहीं है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
***धर्मपाल शास्त्री***
काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है चूहो। म्याऊँ सो रही है। इस कविता में कवि ने एक दिन बिल्ली मौसी के सो जाने पर चूहों को स्वच्छंदतापूर्वक मनमानी करने हेतु ललकारा है। इस कविता में कवि कह रहे हैं कि घर के पीछे तथा छत के नीचे पाँव पसारे, पूँछ सँवारे बिल्ली मौसी सो रही है। उसकी साँसों से ‘घर घर घर घर’ की आवाज़ आ रही है। बिल्ली सोई है और रसोई में खाने-पीने की चीजों से भरे हुए पतीले और रसीले चने रखे हैं। कवि चूहों से कहता है कि झटका देकर मटके को उलट दो तथा जो कुछ मिले, उसे चट कर जाओ। आज तुम्हें किसी बात का डर नहीं है। आज तुम किसी भी चीज़ को कुतर सकते हो। तुम अपनी पूँछ मरोड़ों, पूँछ सिकोड़ों या कितना भी तबाही मचा दो, आज कोई कुछ कहनेवाला नहीं है, क्योंकि आज बिल्ली सो रही है। आज घर पर तुम्हारा ही राज है।
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