Tuesday, 29 October 2013

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं



ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

 

सूरज का उगना सूरज का ढलना

चाँद का चमकना चाँद का छुपना

 यह द्रश्य मानो मन को अनुपम करता है

उसी तरह जन्म से म्रत्यु और बिच का यह सफ़र

मानो हम से कुछ कहना चाहता हो

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

सुख और दुःख जिंदगी के दो रंग है

यह मुठी में उस रेत के समान है

जो हमेशा मुठी से फिसल जाते है

कभी सदा न रहता जिंदगी में सुख 

रहता सदा न जिंदगी में दुःख कभी

कभी खुशिया छलक पड़ती है

कभी गम आसु बनकर बहजाते है 

कभी थोडा तो कभी ज्यादा

मिलता जरुर है प्रयत्नों से         

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

सुख का आना, दुःख का जाना

मोंत का आना, हमारे हाथ में तो नहीं है

कभी मोंत के आने का इंतजार करते है

तो कभी मोंत बिन बुलाये धमक पढ़ती है

उस को तो बस आना है, आना है ................

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

क्यों तु भूल जाता है

यह सफर न मेरा है न तेरा है

यह सफर तो सिर्फ उस शरीर का है

जिस को हम ने अपना माना है

तु पहचान खुद को क्यों भूल जाता है

तु सिर्फ एक मात्र आत्मा ही तो है

शायद इसलिए ऐ जिंदगी तेरा सफर बहुत प्यारा हैं

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