Tuesday 29 October 2013

कहाँ आ गए हैं

मत छीनो ये बचपन
न मालूम कब बीत जायेगा
भूल गए है खेलकूद
न मालूम कब खेल पायेगा
फस गया है इछाओ के भवर में
न मालूम कब निकल पायेगा  
मत थोपो हसरते उनके कंधो पर
थक गया है यह बचपन
न मालूम कब सम्भलपायेगा
यदि ये बचपन बिगड़ गया
न मालूम कब सवर पायेगा 
कहा चला गया है बचपन
कहाँ आ गए हैं

यह युग है टेक्नोलॉजी का
इन्टरनेट ने किया अचंभित
मच गया कोहराम
बच्चे-युवा हुए दीवाने
ये आगाज है नए विश्व का
बन गए है गुलाम
वे अनजान है इस विश्व से 
न जाने कब से
रोक लो उन्हें 
थामलो उनका हाथ
ये इंटरनेट कहीं ले न डूबे...!
कहाँ आ गए हैं



क्यों भूल गया रिश्ते-नाते
न मालूम कब समझेगा
क्यों भाग रहा है पैसे के पीछे
न मालूम इस अंधी दौड़ मे
बीत गई ज़िंदगी कमाने में
न आएगा पैसा काम
अभी भी वक्त है तू समलजा
कही ये तुझे निगल ना जाये
कहाँ आ गए हैं

निकले है सफ़र पर कब से
ना मंजिल का ना घर का पता है
न मालूम यह सफर कब थमेगा
क्यों भाग रहा है बंद आखो से
क्यों है विश्वास स्वयं पर
क्यों भुल जाता है स्व को  
न मालूम कब जान पायेगा
भय है जैसे मौत का
न मालूम कब थम जाये
कहाँ से सफ़र शरू हुआ था
कहाँ आ गए हैं

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