Saturday, 25 February 2017

क्यों उलझे है कच्चे मन

मन की महिमा
मन ही जाने
पागल है ये मन
बावरा है ये मन
एक है यह मन
जहा चाहे ये मन
वहा लगावे
न है अंकुश कोई
इस मन पर
भागे सरपट ये मन
यहा से वहा
कोई जोर नहीं
इस मन पर
जितना सुलझाऊँ 
उतना उलझता है
बच्चो का ये कच्चा मन

रफ़तार है नई नई
जीवन में उनके
चाहत है अववल की
मुश्किल है चलना
इस गुजरते वक्त के साथ
घर करलिया है
मानो इस फेलते तनाव ने
उम्मीद है कही ज्यादा की
इस कच्चे मन से

ये बच्चा है जब तक
कच्चा है समझ से तब तक
कच्चा है रिश्ते नाते से सब
कच्चा है बातो से मुह की
ज्यो ज्यो बढाती है उम्र 
त्यों त्यों बदलता है नजरिया
घिर जाता है ये बचपन
पाप के गलियारों में
क्यों उलझ जाता है
ये कच्चा मन बच्चो का

हर बच्चा है अलग
हर सौच है उनकी अलग
हर दृष्टिकोण है उनका अलग
फसा है सुख दुःख के भवर में
जो छाप पड़ेगी इस मन पर
पड़ी रहेगी वो जीवन भर 
ये भविष्य है इस देश के
मत लगने दो ग्रहण मासूमियत को 
मत खोने दो मन की चंचलता
मत खोने दो उनका भोलापन
मत उलझने दो इस 
कच्चे मन को.............! 

खुले आसमान में
पंख लगाकर
उड़ने दो
कच्चे मन को.....!

Thursday, 2 February 2017

फिर पेश हुआ बजट



फिर पेश हुआ
बजट पहला
नोटबंदी के बाद

चर्चा है चारो और
खबर है मानो
टी.वि की
ये बजट है
आम आदमी का
करे काम
झटपट
क्यों नष्ट
करे समय


फिर पेश हुआ
देश का बजट

विषय है चर्चा का
पक्ष और विपक्ष का
बच्चे बूढ़े नोजवान का
डिजिटल के प्रचार का
गाँवों के विकास का
बढ़ती मेंहगाई का
आमदनी बढ़ाने का
खर्च में कटौती का
गरीबों के हित का
किसान की भलाई का
शिक्षा के प्रसार का
रक्षा के खर्च का

फिर पेश हुआ
देश का बजट

कुछ फयदा है तो
कुछ नुकसान है
थोड़ा खुश है तो
थोड़ा नाराज है
थोड़ा सुकून है तो
थोड़ा उलझन है
आम आदमी का
फिर भी बढ़ेगा
कष्ट

फिर पेश हुआ
देश का बजट

दौलतमंद हुआ
पूँजीपति
हुआ बेचैन
मिडिल क्लास
बढ़ता अम्बार
गरीबी का
लेख-जोखा है
लाखो-करोड़ो का
कुछ को मिला मौका
कुछ को मिला
फिर से धोखा
खूब फलता है
फूलता है।
फिर भी आतंक
लगता है अजीब
किन्तु यही सच है
कुछ भी हो सुखी है
भ्रष्ट व्यक्ति

फिर पेश हुआ
देश का बजट

क्योंकि –
गहरा रिश्ता है
बजट का धन से
ये तो चाल है
वित्तमंत्री की
बजट जोड़,
गुणा, घटाव की
पहुँचता है पूरा गिलास
पानी की बूंद बनकर
जनता तक
जो भी हो
सुखी रहेंगे


फिर पेश हुआ बजट….!

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

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