संत खेले होली सघन वन में
अकेले वन में, मधुवन में
आज मची है धूम रंगों की
लगे उत्सव ये रंगों का
इस सघन वन में,मधुवन में
वे बसते है चैतन्य गुफा में
वे रम जाते है अपने में
वे धारण करते है अनन्त गुणों को
रामायो वन में एक ध्यान
आतम राम का
इस सघन वन में,मधुवन में
त्यागा सब घर बार
त्यागे तुमने सब राग-द्वेष
पिघला अहंकार और क्रोध
भागे वैर-विरोध हृदय से
पलायन हुए सब वैरी कर्म
सरल होगया मन का व्यवहार
रम गए तुम आत्म स्वरुप में
इस सघन वन में,मधुवन में
वे रमावे शाश्वत की धुनी
वे रम जावे शाश्वत के आनंद में
ये शाश्वत का धाम है अनूठा
ये शाश्वत का रस है अनूठा
इस रस में वे रम जावे
लौ जलाई चिंतन की ज्वलंत
इस आतम तत्व में
इस सघन वन में,मधुवन में
टल जाती है चार गति
के अनन्त पीड़ा
जब ध्याय आत्मस्वरूप को
बंद हो जाये पुण्य-पाप
चैतन्य गुफा में जब आय
चहिये पूर्ण दशा इस चेतन को
वे रम जाए इस अति आनंद में
ऐसी निर्मल भावना भाई
इस सघन वन में,मधुवन में
में वंदन करता हु बार बार
उनके चरणों में
भावना भाते है हम भी ऐसी
पार लगाये इस भव से
इस सघन वन में,मधुवन में
अकेले वन में, मधुवन में
आज मची है धूम रंगों की
लगे उत्सव ये रंगों का
इस सघन वन में,मधुवन में
वे बसते है चैतन्य गुफा में
वे रम जाते है अपने में
वे धारण करते है अनन्त गुणों को
रामायो वन में एक ध्यान
आतम राम का
इस सघन वन में,मधुवन में
त्यागा सब घर बार
त्यागे तुमने सब राग-द्वेष
पिघला अहंकार और क्रोध
भागे वैर-विरोध हृदय से
पलायन हुए सब वैरी कर्म
सरल होगया मन का व्यवहार
रम गए तुम आत्म स्वरुप में
इस सघन वन में,मधुवन में
वे रमावे शाश्वत की धुनी
वे रम जावे शाश्वत के आनंद में
ये शाश्वत का धाम है अनूठा
ये शाश्वत का रस है अनूठा
इस रस में वे रम जावे
लौ जलाई चिंतन की ज्वलंत
इस आतम तत्व में
इस सघन वन में,मधुवन में
टल जाती है चार गति
के अनन्त पीड़ा
जब ध्याय आत्मस्वरूप को
बंद हो जाये पुण्य-पाप
चैतन्य गुफा में जब आय
चहिये पूर्ण दशा इस चेतन को
वे रम जाए इस अति आनंद में
ऐसी निर्मल भावना भाई
इस सघन वन में,मधुवन में
में वंदन करता हु बार बार
उनके चरणों में
भावना भाते है हम भी ऐसी
पार लगाये इस भव से
इस सघन वन में,मधुवन में
Nice one
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