Saturday, 20 March 2021

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

 "जिनशासनाष्टक"


रत्नात्रयमय जिनशासन ही
महावीर का शासन है।
क्या चिंता अध्रुव की तुझको,
ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥

द्रव्यदृष्टि से निज को देखे,
स्वयं स्वयं में तृप्ति हो।
भेद विज्ञान सहज ही वर्ते,
किंचित नहीं आसक्ति हो।
उदभुत समता हो जीवन में,
तत्वों का प्रतिभासन है ॥  रत्नात्रयमय....

आविर्भूत सामान्य हुआ है,
तिरोभूत हैं सर्व विशेष ।
सम्यक् हो परिणमन सहज ही,
राग-द्वेष हुए निःशेष ।
शासक कोई अन्य नहीं है,
सहजरुप अनुशासन है।।  रत्नात्रयमय....

परम अहिंसा सहज प्रवर्ते,
हिंसा का नहीं कोई काम।
निवृत्तिमय परिणति शोभे,
पर वृत्ति का नहीं कुछ नाम।
अहो-अलौकिक प्रभुता विलसे,
हो विभाव का नाशन है॥  रत्नात्रयमय....

सम्यकदर्शन मूल अहो,
चारित्र वृक्ष पल्लवित हुआ।
ज्ञान ज्ञान में भासे क्षण-क्षण,
दशलक्षण से फलित हुआ।
है निश्चिंत द्रोपदी सुखमय,
नहीं कोई दुशासन है॥  रत्नात्रयमय...

सत्य अहिंसा प्राण हमारे,
तत्वज्ञान का धुव आधार ।
जिनभक्ति हो सदा हृदय में,
मुक्तिमार्ग का हो विस्तार।
सहज निशंक सहज निर्भय है,
मिला हमें जिनशासन है।।  रत्नात्रयमय...

ध्रुवदृष्टी प्रगटी अंतर में,
मोह महातम नशा है ।
ज्ञेय मूडता मिटी सहज ही,
ज्ञायक ही प्रतिभासा है।
भक्तिभाव से होय वंदना,
व्यक्त नमोऽसु शासन है।।  रत्नात्रयमय....

सपने में भी नहिं विराधना,
और मलिनता हो पाये।
घोर परीषह उपसर्गों में,
चित्त नहीं चिगने पावे।
सावधान होवें अपने में,
अप्रमत्त यह शासन है।।  रत्नात्रयमय....

इष्ट- अनिष्ट न कुछ भी भासे,
किचित नहीं विसमता हो।
ज्ञायक से संतुष्टि होवे,
ज्ञेयों में नहीं ममता हो।
ज्ञानमयी वैराग्यमयी,
आनंदमयी ये शासन है॥  रत्नात्रयमय....

Saturday, 13 March 2021

Mainne Ek Phool Se Kaha:.

 मैंने एक फूल से कहा:...


  मैंने एक फूल से कहा:...
कल तुम मुरझा जाओगे:..!
फिर क्यों मुस्कुराते हो ..?
व्यर्थ में यह ताजगी ...
किस लिए लुटाते हो ..??

फूल चुप रहा...!!

इतने में एक तितली आई ..!
पल भर आनंद लिया ..!
उड गई ..!!

एक भौंरा आया..!
गान सुनाया ..!
सुगंध बटोरी..!
और आगे बढ गया ..!!

एक मधुमक्खी आई..!
पल भर भिन भिनाई ..!
पराग समेटा ..! और ...
झूमती गाती चली गई ..!!

खेलते हुए एक बालक ने ...
स्पर्श सुख लिया ..!
रूप-लावण्य निहारा..!
मुस्कुराया..! और...
खेलने लग गया..!!

तब फूल बोला:-----
मित्र: !
क्षण भर को ही सही:...
मेरे जीवन ने कितनों...
को सुख दिया ..!
क्या तुमने भी कभी..?
ऐसा किया ..???

कल की चिन्ता में ...
आज के आनंद में ...
विराम क्यो करूँ..?
माटी ने जो ...
रूप; रंग; रस; गंध दिए ..!
उसे बदनाम क्यो करूँ..?

मैं हँसता हूँ..! क्योंकि...
हँसना मुझे आता हैं ..!
मैं खिलता हूँ..! क्योंकि ...
खिलना मुझे सुहाता हैं ..!

मैं मुरझा गया तो क्या ..?
कल फिर एक ...
नया फूल खिलेगा ..!
न कभी मुस्कान रुकी हैं .. नही सुगंध ...!!

जीवन तो एक सिलसिला है ..!
इसी तरह चलेगा :!!

जो आपको मिला है ...
उस में खुश रहिये ..!
और प्रभु का ...
शुक्रिया कीजिए ..!
क्योंकि आप जो ...
जीवन जी रहे हैं ...
वो जीवन कई लोगों ने ...
देखा तक नहीं है..!

खुश रहिये ..!
मुस्कुराते रहिये ..!
और अपनों को भी ...
खुश रखिए ..!!

Apun Ko Kya Karana!

अपुन को क्या करना! 


हम नहीं
सरकारी आंकड़े कहते हैं

सबसे ज्यादा बूढ़े हैं आज जैन समाज में

गांव-गांव
नगर-नगर
सबसे ज्यादा कुंवारे हैं
जैन समाज में

शादियाँ नहीं होंगीं
नये जैन भी नहीं होंगे
कुंवारे ही बुढा जायेंगे
हजारों-जैन समाज में

अजैनों में रिश्ते
खुद ही खोज लेती हैं
पढ़ जो गई हैं लड़कियां
जैन समाज में

नौकर लडकों की चांदी
सोने के व्यापारियों को
अब कौन पूंछता है
जैन समाज में

न सुनता कोई किसी की
हर ओर मनमानी
चारों ओर देखलो
जैन समाज में

विधि विधान करवा कर
विश्व शांति कराने में
श्रावक-साधु व्यस्त हैं
जैन समाज में

चातुर्मास भव्य हों
TV पर प्रवचन हों
साधु की उपलब्धि
जैन समाज में

शादियाँ करवा दो
कुंवारे बेचैन हैं
पर चुप्पी साधे हैं नेता
जैन समाज में

अगले तीस सालों में
जैन किताबों में रह जायेंगे
अब बच्चे हो नहीं रहे
जैन समाज में

हमको क्या? हम बूढ़े हैं
जैन समाज जाने
क्या करना है आगे को
जैन समाज में
***
NK🙊जीवमित्र

Friday, 5 March 2021

Ek Budhiya in Hindi - NCERT Class 1

 एक बुढ़िया


कहीं एक बुढिया थी जिसका
नाम नहीं था कुछ भी,
वह दिन भर खाली रहती थी
काम नहीं था कुछ भी।

काम न होने से उसको
आराम नहीं था कुछ भी,
दोपहरी, दिन, रात, सबेरे
शाम नहीं थी कुछ भी।


*** निरंकारदेव ‘सेवक’***

काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है ‘एक बुढ़िया’। इस कविता में कवि ने एक ऐसी बुढ़िया के बारे में बताया है, जिसके पास कोई काम न था। वह दिनभर खाली रहती और कोई काम नहीं करती थी। काम रहने के कारण वह दिनभर बैठी रहती और थक जाती थी। इसलिए उसे आराम भी नहीं था। काम न रहने के कारण उसके लिए सुबह, दोपहर, शाम और रात सब बराबर थे।


Bandar Gaya Khet Mein Bhaag in Hindi - NCERT Class 1

 बंदर गया खेत में भाग

बंदर गया खेत में भाग,
चुट्टर-मुट्टर तोड़ा साग।
आग जलाकर चट्टर-मट्टर,
साग पकाया खद्दर-बद्दर।

सापड़-सूपड़ खाया खूब,
पोंछा मुँह उखाड़कर दूब।
चलनी बिछा, ओढ़कर सूप,
डटकर सोए बंदर भूप।

*** सत्यप्रकाश कुलश्रेष्ठ***

 

काव्यांशों की व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है 'बंदर गया खेत में भाग’। इस कविता में उन्होंने एक बंदर के क्रियाकलापों का बड़े ही रोचक ढंग से वर्णन किया है। एक बंदर एक साग के खेत में गया और ढेर सारा साग तोड़ा। फिर उसने आग जलाकर साग पकाया और उसे सापड़-सूपड़ करके खूब मज़े से खाया। उसके बाद उसने दूब उखाड़कर अपना मुँह पोंछा। फिर बंदर राजा चलनी बिछाकर और सूप ओढ़कर मजे से सो गए।

Patang in Hindi - NCERT Class 1

पतंग

सर-सर सर-सर उड़ी पतंग,
फर-फर फर-फर उड़ी पतंग।

इसको काटा, उसको काटा,
खूब लगाया सैर सपाटा।

अब लड़ने में जुटी पतंग,
अरे कट गई, लुटी पतंग।

सर-सर सर-सर उड़ी पतंग,
फर-फर फर-फर उड़ी पतंग।

***सोहनलाल द्विवेदी***


काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है पतंग’। इस कविता में कवि ने पतंग के गुणों को बताया है। कवि कहता है कि पतंग आसमान में सर-सर सर-सर, फर-फर फर-फर करके उड़ती है। एक पतंग दूसरी पतंग को काटती हुई आकाश में खूब सैर-सपाटा करती है। पतंगें एक-दूसरे से लड़ती हैं और फिर कटकर लुट जाती हैं। सर-सर, फर-फर करती पतंग आसमान में उड़ान भरती है।

Pagdi in Hindi = NCERT Class 1

पगड़ी

मैली पगड़ी,
इतनी रगड़ी,
इंतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
रह गया मैल,
न रह गई पगड़ी।

हट्टी-कट्टी।
मोटी-तगड़ी,
मलकिन झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
तर गया मैल,
और तर गई पगड़ी।

***सर्वेश्वरदयाल सक्सेना***


काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है ‘पगड़ी’ एक बड़ी रोचक कविता है। इस कविता में विचित्र स्थितियों का सामना करती एक पगड़ी का वर्णन किया गया है। कवि कह रहा है कि एक पगड़ी को रगड़-रगड़कर इतना साफ़ किया गया कि मैल तो रह गई, किंतु पगड़ी फट गई। इस पर पगड़ी की हट्टी-कट्टी मालकिन इतनी झगड़ी कि मैल और पगड़ी दोनों ही तर-बतर हो गए।

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...