हाथ से फिसल रहा है वक्त
जन्म से लेकर अब तक
न मालूम क्या-क्या पाया
जब-जब सोचु में
कई सवालो से घिरा पाया
कई यो के जवाब पालिये
कई सवाल नासूर बन गए
कई के जवाब का इंतजार
जब पन्ने पलता हूँ जिंदगी के
जन्म से लेकर अब तक
न मालुम जिंदगी से मेने क्या पाया
जब जब में सोचता हु अपने बारे में
कई सवाल है मेरे मन में
जिसका जवाब आज तक नहीं मिला
जब पन्ने पलट कर देखता हु
एक बार फिर से जिंदगी के
तो लगता है फिसल चूका है वक्त
बचपन गुजर चूका है
कभी खेल में तो कभी मस्ती में
कभी लड़ने में तो कभी मनाने में
कभी सोने में तो कभी जागने में
कभी लम्बी दौड़ में
तो कभी इछाओ को पुरा कर ने में
कभी ख़ुशी में तो कभी गम में
न मालूम इन सब में बचपन हाथ से निकल गया
हमारा वक्त हाथ से निकल गया
जवानी आई और आदि गुजर गई
कभी कमाने में तो कभी सेटल करने में
कभी पाने में तो कभी खोने में
कभी न समजा में
कभी रिश्ते को बुनने में
तो कभी रिश्ते को निभाने में
न मालूम यह वक्त कहा निकल गया
इस भागती दौड़ में
क्यों बिखर गई यादे
क्यों फिसल रहा है वक्त
क्यों दूर हो रहे है अपनों से
क्यों कर रहे है बार बार वही गलती
ना जानते है, ना जान सकते है
लाख कोशिश के बाउजूद
हम वक्त को रोक नहीं पाये
जैसे मुटी में रखी रेत के समान है वक्त
जो हाथ से फिसल जाता है
उसी तरह जिंदगी भीकर जाती है
में फिरसे अकेला हो जाता हु
और वक्त कहा निकल जाता है
एक नए सफ़र कि तलाश में
नए सपनो को बुनने का वक्त आगया है
फिर से नई आशाए जगानी है मन में
नए विशवास के साथ
हमें धन्यवाद देना है वक्त को
जिसने मेरा इतना साथ दिया
कुछ खट्टी मीठी यादों में
कई खवाइश है दिल में
उनको पूरा कर ने का वक्त आगया है
आशा करता हु सपने होंगे पुरे
और इसी तरह यह वक्त भी गुजर जायेगा