झूला
अम्मा आज लगा दे झूला,
इस झूले पर मैं झूलूंगा।
उस पर चढ़कर, ऊपर बढ़कर,
आसमान को मैं छू लूंगा।
झूला झूल रही है डाली,
झूल रहा है पत्ता-पत्ता।
इस झूले पर बड़ा मज़ा है,
चल दिल्ली, ले चल कलकत्ता।
झूल रही नीचे की धरती,
उड़े चले, उड़े चल,
उड़ चल, उडु चल।
बरस रहा हैं रिमझिम, रिमझिम,
उड़कर मैं लूटू दल-बादल।
कविता का सारांश
इस कविता के माध्यम से कवि ने बताया की एक बच्चा है जो अपनी माँ से झूला लगवाने का आग्रह करता है. इस कविता का नाम है 'झूला', कवि एक बच्चे की जो कोमल भावना है उसको मार्मिक तरीके से व्यक्त कर रहा है.
उपरोक्त पंक्तियों में, एक बच्चा अपनी माँ से अपने लिए झूलने के लिए कह रहा है। बच्चा अपनी मां से उसके लिए एक झूला लगाने के लिए कह रहा है ताकि वह उस पर चढ़ सके और उठकर आसमान को छू सके।
कवि आगे की पंक्तियों में कहता है कि पेड़-पौधों की डालियाँ झूले के साथ झूल रही हैं। पत्ते-पत्ते तक झूल रहे हैं। बच्चा सोचता है कि इस झूले पर झूलने में कितने मजे हैं। झूले पर बैठकर झूलते हुए वह कल्पना-लोक में कभी दिल्ली तो कभी कलकत्ता की सैर कर आता है। इस वजह से वह अम्मा को कहता है एक झूला लगवा दो।
झूले में झुलते बच्चे को ऐसा लग रहा है, की जैसा उसका झूला झुल रही है उसके साथ-साथ नीचे की धरती भी झूला झुल रही है। उसी समय रिमझिम-रिमझिम वर्षा भी हो रही है। झूले पर बैठे बच्चे के मन में आसमान पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों के दल को लूटने के विचार आ रहे हैं।