Friday, 12 February 2021

Class 1 - भगदड़ Poem

 भगदड़


बुढ़िया चला रही थी चक्की,
पूरे साठ वर्ष की पक्की।
दोने में थी रखी मिठाई,
उस पर उड़कर मक्खी आई।

बुढिया बाँस उठाकर दौड़ी,
बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।

झपटी बुढ़िया घर के अंदर,
कुत्ता भागा रोटी लेकर।
बुढिया तब फिर निकली बाहर,
बकरा घुसा तुरंत ही भीतर।

बुढ़िया चली, गिर गया मटका,
तब तक वह बकरा भी सटका।
बुढ़िया बैठ गई तब थककर,
सौंप दिया बिल्ली को ही घर।

***पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी***

कविता का सारांश

प्रस्तुत कविता ‘भगदड़’ के कवि पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी हैं। ये कविता बहुत ही मार्मिक है इस कविता में एक बुढ़िया की व्यथा का चित्रण किया है. एक घर में एक बुढ़िया रहती थी उसकी उम्र साठ वर्ष की थी वो परेशान थी घर के जीव-जंतुओं से. 

कवि कहता है कि बुढिया घर में राखी चक्की चला रही थी, उसके घर में दोने में रखी मिठाई थी जब बुढिया चक्की चला रही थी तभी दोने में रखी मिठाई पर मक्खी आकर बैठ गई। बुढ़िया ने मक्खी को देखा और जैसे ही बाँस उठाकर मक्खी को भगाने के लिए दौड़ी, तभी कही से बिल्ली आजाती है और वह पकौड़े खाने लगी।
बुढिया ने जैसे ही घर के अंदर बिल्ली को देखा तो उसको भगाने के लिए झपटी, तभी उसी समय कुत्ता रोटी लेकर भाग गया।

यह देख बुढिया बाहर निकली, तो बकरा तुरंत ही घर के अंदर घुस गया। बुढिया बकरे को भगाने के लिए उसकी तरफ भागी तो वह मटके से जा टकराई।  जिससे मटका गिर गया। जैसे ही मटका गिरा उसकी आवाज से बकरा भाग खड़ा हुआ। तब बुढ़िया थककर बैठ गई और बिल्ली को ही पूरा घर सौंप दिया। 

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