Wednesday, 24 February 2021

Moksh - Lalana ko Jiya ! Kab Barega?

 मोक्ष - ललना को जिया ! कब बरेगा?

स्वरूप - बोध बिन, सहता दुख निशिदिन,

यदि उसे पाता, तू बन सकता जिन।

नितनिजा - नुमनन कर व्यामोह हनन,

चाहता न मरण यदि न जरा न जनन ।

आशा - गर्त यह कदापि न भरेगा,

मोक्ष - ललना को जिया! कब बरेगा? ।।१।।

 

सुखदाता नहीं मात्र वस्त्र मुंचन,

दुखहर्ता नहीं मात्र केश लुंचन ।

करे राग द्वेष जो धर नग्न - भेष,

वे अहो जिनेश! पावें न सुख लेश।।

आत्मावलोकन अरे! कब करेगा,

मोक्ष - ललना को जिया ! कब वरेगा? ।।२।।

 

करता न प्रमाद, नहीं हर्ष विषाद,

लेता वही मुनि, नियम से निज - स्वाद ।

सुमणि तज काच में, क्यों तु नित रमता?

पी मद, अमृत तज, क्यों भव में भ्रमता?

निज - भक्ति - रस कब, तुझ में झरेगा?

मोक्ष - ललना को जिया! कब वरेगा? ।।३।।

 

तज मूढता त्रय, भज सदा रत्नत्रय,

यदि सुख चाहता, ले ले, झट स्वाश्रय ।

अब ‘‘विद्या" जाग, अरे! शिव - पथलाग,

शीघ्र राग त्याग, बन तू वीतराग ।।

कब तक लोक में, जनम ले मरेगा?

मोक्ष - ललना को जिया कब वरेगा? ।।४।।

 

- महाकवि आचार्य विद्यासागर

 




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