आम की टोकरी
छह साल की छोकरी.
भरकर लाई टोकरी।
टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।
दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हमको देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
भरकर लाई टोकरी।
टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।
दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हमको देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
***कवि: रामकृष्ण शर्मा ‘खद्दर***
काव्यांशों की व्याख्या
आज की कविता है , ‘आम की टोकरी’ इस में एक छह साल की बच्ची है जो अपने सर पर टोकरी रखकर आम बेच रही है. इस कविता में बच्ची के मनोभावों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है कवि "रामकृष्ण शर्मा ‘खद्दर’ " ने.
वो कहते है की एक छह साल की बच्ची अपने सर पर आम की टोकरी रखकर बेच रही है, किंतु वह नन्ही सी बच्ची उनका दाम नहीं बताती। वह आम से भरी टोकरी सबको दिखा - दिखाकर अपने पास बुला रही है।
वह बच्ची सबको आम तो दे रही है, किन्तु अपना नाम नहीं बता रही है। कवि कहता है कि हमारा ध्यान रसीले आम को चूसने का है. इसलिए हमें बच्ची का नाम नहीं पूछना है.
वह बच्ची सबको आम तो दे रही है, किन्तु अपना नाम नहीं बता रही है। कवि कहता है कि हमारा ध्यान रसीले आम को चूसने का है. इसलिए हमें बच्ची का नाम नहीं पूछना है.
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