Saturday, 13 February 2021

Ab Main Mam Mandir Mein Rahoonga

अब मैं मम मन्दिर में रहूँगा

                                                                                   


 

 

अमिट, अमित अरु अतुल, अतीन्द्रिय,

अरहन्त पद को धरूँगा

सज, धज निजको दश धर्मों से -

सविनय सहजता भजूँगा  ।। अब मैं ।।

 

विषय - विषम - विष को जकर उस -

समरस पान मैं करूँगा।

जनम, मरण अरु जरा जनित दुख -

फिर क्यों वृथा मैं सहूँगा? ।। अब मैं । ।

 

दुख दात्री है इसीलिए अब -

न माया - गणिका रखूँगा।।

निसंग बनकर शिवांगना संग -

सानन्द चिर मैं रहूँगा ।।अब मैं । ।

 

भूला, परमें फूला, झूला -

भावी भूल ना करूँगा।

निजमें निजका अहो! निरन्तर -

निरंजन स्वरूप लखूँगा ।। अब मैं । ।

 

समय, समय पर समयसार मय -

मम आतम को प्रनमुँगा।

साहुकार जब मैं हूँ, फिर क्यों -

सेवक का कार्य करूँगा ? ।।अब मैं । ।

 

***महाकवि आचार्य विद्यासागर***

 

भटकन तब तक भव में जारी 



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