Sunday, 21 February 2021

Banana Chaahata Yadi Shivaangana Pati

 बनना चाहता यदि शिवांगना पति


 कर कषाय शमन, पंच इन्द्रिय दमन,

नित निजमें रमण, कर स्वको ही नमन ।

जिया! फिर भव में, नहीं पुनरागमन,

ओ! क्या बताऊं! बस चमन ही चमन ।।

समता - सुधापी, तज मिथ्या परिणति,

बनना चाहता यदि शिवांगना - पति । ।१ ।।

 

केवल पटादिक वह मूढ़ छोड़ता,

सुधी कषाय - घट, को झटिति तोडता ।।

गिरि - तीर्थ करता वह जिन दर्शनार्थ,

जिनागम जो मुनि पढा नहीं यथार्थ ।।

मद ममतादि तज बन तू निसंग यति,

बनना चाहता यदि शिवांगना - पति ।।२।।

 

सुख दायिनी है यदि समकित - मणिका,

दुख दायिनी है वह माया - गणिका ।।

पीता न यदि तू निजानुभूति - सुधा,

स्वाध्याय, संयम, तप कर्म भी मुधा ।।

दिनरैन रख तू केवल निज में रति,

बनना चाहता यदि शिवांगना पति ।।३।।

 

उपादान सदृश होता सदा कार्य,

इस विधि आचार्य बताते अयि! आर्य

‘विद्या’ सुनिर्मल, - निजातम अत:! भज,

परम समाधि में स्थित हो कषाय तज ।।

संयम भावना बढ़ा दिनं प्रति अति,

बनना चाहता यदि शिवांगना पति ।।४।।

 

- महाकवि आचार्य विद्यासागर

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चेतन निज को जान जरा

पर भाव त्याग तू बन शीघ्र दिगम्बर


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