Monday, 2 January 2017

अंकुर फूटेगा एक दिन पुनः

इस निराश से भरे जीवन में 
अशान्त से भरे मन में
अनुभूति है सुख-दुःख  
जन्म-मरण के चक्र में
मानव की मानवता
खो गई है कदाचित भीड़ में
अंकुर फूटेगा जिसका पुनः एक दिन
शेष है बीज अभी भी उसका 
होगा मानव जीवन हरा भरा
यह विश्वास है कवि को

जीवन में चारो और
सिर्फ प्रेम है और केवल प्रेम है
प्रेम न तो व्यापर है
न ही इर्ष्या और स्वार्थ
प्रेम तो है निश्छल और नि:स्वार्थ
प्रेम का एक ही नियम है
प्रेम... प्रेम... प्रेम...!
अंकुर फूटेगा एक दिन पुनः
क्योंकि यही जिंदगी का
नियम हैं।

कर तू जिंदगी से प्यार 
स्वयं पर कर यकीन 
सुन्दर है, साहस है जीवन 
उमंग है, अभिव्यक्ति है जीवन 
नहीं है जीवन अशुभ  
कर युद्ध उससे 
सफलता ही मिल जाएगा 
यथार्थ में, जीवन ही आनंद है
आनंद ही ईश्वर है
अंकुर फूटेगा एक दिन पुनः
आनंद का
जीवन होगा सुन्दर























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