Sunday, 8 January 2017

खुशियो की भूलभुलैया

तलाश है इस जीव  को
मुकम्मल ख़ुशी पाने की
न जाने कबसे भटक रहा है
कभी उल्टा गर्भ मे कभी चौरसी भटके
कभी इस दर पे कभी उस दर
कभी इस डगर पे कभी उस डगर
कभी इस गली तो कभी उस गली में
कभी इधर से और कभी उधर से
कभी मोह रूपी भवर में फस ता जारहा है
भटक गया है इस संसार में

सरक आई है उसकी तलाश,
मौलिक दुनिया से मायावी दुनिया में
मायावी दुनिया(सोशल मीडिया) के अवतार ने  
मानो खलबली मचादी है संसार में
जीवन का है अभिन्न अंग  
रूबरू होते है रोज उससे
यही तो है मायावी दुनिया

न समझो उसे सिर्फ समाचार पत्र
न समझो उसे रेडियो या न्यूज चैनल
ये तो माध्यम है
संचार का, अभिव्यक्ति का
विचारो का, जान-पहचान का
कमैंट्स का ,शेयरिंग का
तरह तरह के रिश्तो का
जोड़ दिया है हम को एक दूसरे से
लगता है अकेले नहीं है दुनिया में
लगता है खुशियां है चारोओर

ये तो चकाचौंध है मायावी दुनिया का  
ये एहसास है खट्टे मिठे पलो का
ये खुशिया है कुछ समय की
ये दूर कर रही है अपनों को अपनों से
धर्म से, संस्कार से, ईश्वर से  
अजीब विडंबना है
हम बन नहीं पाए पारिवारिक
पर होड़ है सोशल बनने की
ये तो भूलभुलैया है खुशियो की

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