Friday, 5 March 2021

Bandar Gaya Khet Mein Bhaag in Hindi - NCERT Class 1

 बंदर गया खेत में भाग

बंदर गया खेत में भाग,
चुट्टर-मुट्टर तोड़ा साग।
आग जलाकर चट्टर-मट्टर,
साग पकाया खद्दर-बद्दर।

सापड़-सूपड़ खाया खूब,
पोंछा मुँह उखाड़कर दूब।
चलनी बिछा, ओढ़कर सूप,
डटकर सोए बंदर भूप।

*** सत्यप्रकाश कुलश्रेष्ठ***

 

काव्यांशों की व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है 'बंदर गया खेत में भाग’। इस कविता में उन्होंने एक बंदर के क्रियाकलापों का बड़े ही रोचक ढंग से वर्णन किया है। एक बंदर एक साग के खेत में गया और ढेर सारा साग तोड़ा। फिर उसने आग जलाकर साग पकाया और उसे सापड़-सूपड़ करके खूब मज़े से खाया। उसके बाद उसने दूब उखाड़कर अपना मुँह पोंछा। फिर बंदर राजा चलनी बिछाकर और सूप ओढ़कर मजे से सो गए।

Patang in Hindi - NCERT Class 1

पतंग

सर-सर सर-सर उड़ी पतंग,
फर-फर फर-फर उड़ी पतंग।

इसको काटा, उसको काटा,
खूब लगाया सैर सपाटा।

अब लड़ने में जुटी पतंग,
अरे कट गई, लुटी पतंग।

सर-सर सर-सर उड़ी पतंग,
फर-फर फर-फर उड़ी पतंग।

***सोहनलाल द्विवेदी***


काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है पतंग’। इस कविता में कवि ने पतंग के गुणों को बताया है। कवि कहता है कि पतंग आसमान में सर-सर सर-सर, फर-फर फर-फर करके उड़ती है। एक पतंग दूसरी पतंग को काटती हुई आकाश में खूब सैर-सपाटा करती है। पतंगें एक-दूसरे से लड़ती हैं और फिर कटकर लुट जाती हैं। सर-सर, फर-फर करती पतंग आसमान में उड़ान भरती है।

Pagdi in Hindi = NCERT Class 1

पगड़ी

मैली पगड़ी,
इतनी रगड़ी,
इंतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
रह गया मैल,
न रह गई पगड़ी।

हट्टी-कट्टी।
मोटी-तगड़ी,
मलकिन झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
तर गया मैल,
और तर गई पगड़ी।

***सर्वेश्वरदयाल सक्सेना***


काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है ‘पगड़ी’ एक बड़ी रोचक कविता है। इस कविता में विचित्र स्थितियों का सामना करती एक पगड़ी का वर्णन किया गया है। कवि कह रहा है कि एक पगड़ी को रगड़-रगड़कर इतना साफ़ किया गया कि मैल तो रह गई, किंतु पगड़ी फट गई। इस पर पगड़ी की हट्टी-कट्टी मालकिन इतनी झगड़ी कि मैल और पगड़ी दोनों ही तर-बतर हो गए।

Thursday, 4 March 2021

Chuhon Myaun So Rahi Hai in Hindi - NCERT class 1

 चूहो! म्याऊँ सो रही है


घर के पीछे,
छत के नीचे,
पाँव पसारे,
पूँछ सँवारे।

देखो कोई,
मौसी सोई,
नासों में से.
साँसों में से।

घर घर घर घर हो रही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।

बिल्ली सोई,
खुली रसोई,
भरे पतीले,
चने रसीले।

उलटो मटका,
देकर झटका,
जो कुछ पाओ,
चट कर जाओ।
आज हमारा दूध दही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।

मूंछ मरोड़ो,
पूँछ सिकोड़ो,
नीचे उतरो,
चीजें कुतरो।

आज हमारा,
राज हमारा,
करो तबाही,
जो मनचाही।

आज मची है,
चूहा शाही,

डर कुछ भी चूहों को नहीं है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।

***धर्मपाल शास्त्री***



काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है चूहो। म्याऊँ सो रही है। इस कविता में कवि ने एक दिन बिल्ली मौसी के सो जाने पर चूहों को स्वच्छंदतापूर्वक मनमानी करने हेतु ललकारा है। इस कविता में कवि कह रहे हैं कि घर के पीछे तथा छत के नीचे पाँव पसारे, पूँछ सँवारे बिल्ली मौसी सो रही है। उसकी साँसों से ‘घर घर घर घर’ की आवाज़ आ रही है। बिल्ली सोई है और रसोई में खाने-पीने की चीजों से भरे हुए पतीले और रसीले चने रखे हैं। कवि चूहों से कहता है कि झटका देकर मटके को उलट दो तथा जो कुछ मिले, उसे चट कर जाओ। आज तुम्हें किसी बात का डर नहीं है। आज तुम किसी भी चीज़ को कुतर सकते हो। तुम अपनी पूँछ मरोड़ों, पूँछ सिकोड़ों या कितना भी तबाही मचा दो, आज कोई कुछ कहनेवाला नहीं है, क्योंकि आज बिल्ली सो रही है। आज घर पर तुम्हारा ही राज है।

Rasoi Ghar Kavita in Hindi - Class 1 NCERT

 रसोईघर


आज रसोईघर की खिड़की,
मुन्ना-मुन्नी खोल रहे हैं।
अंदर देखा, चकला-बेलन,
चाकू-छलनी बोल रहे हैं।

मैं चाकू, सब्जी-फल काटू,
टुकड़ा-टुकड़ा सबको बाँटू।
गाजर-मूली प्याज-टमाटर,
छीलो काटो रखो सजाकर।

गोल चाँद-सी हूँ मैं थाली,
बज सकती हूँ बनकर ताली।
मुझमें रोटी-सब्ज़ी डाली,
और सभी ने झटपट खा ली। 

***मधु पंत***

 

काव्यांशों की व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है "रसोईघर" . इस कविता के माध्यम से कवयित्री बड़े ही रोचक शब्दों में रसोईघर की चीजों का वर्णन कर रही हैं। खेलते हुए मुन्ना मुन्नी जब रसोईघर की खिड़की को खोलकर देखते हैं तो पाते हैं कि अंदर चकला-बेलन, चाकू-छलनी आदि बातें कर रहे हैं। चाकू कहता है कि मैं फल और सब्ज़ियाँ काटता हूँ और टुकड़े टुकड़े करके सभी को बाँटता हूँ। गाजर-मूली, प्याज-टमाटर आदि को मैं काटता तथा छीलता हूँ और लोग इसे सजाकर रखते हैं। थाली कहती है कि मेरा आकार गोल चौड़ा-सा है और मैं ताली की तरह बज भी सकती हूँ। मुझमें रोटी-सब्ज़ी डालकर सब झटपट खाते हैं।

Wednesday, 24 February 2021

Prathana - Janisim

 बाल शिक्षा "प्रार्थना" ➽ Jainism



हम छोटे-छोटे बच्चे है,
हम भोले-भाले बच्चे है,
हाथ जोड़ हम विनती करते,
तुम चरणों में माथा धरते।

गुरुवर! हमको दो वरदान,
हटें न पीछे जो लें ठान,
खेले-कूदें और पढें हम,
अच्छे-अच्छे काम करें हम।।

संकलित - क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज

Moksh - Lalana ko Jiya ! Kab Barega?

 मोक्ष - ललना को जिया ! कब बरेगा?

स्वरूप - बोध बिन, सहता दुख निशिदिन,

यदि उसे पाता, तू बन सकता जिन।

नितनिजा - नुमनन कर व्यामोह हनन,

चाहता न मरण यदि न जरा न जनन ।

आशा - गर्त यह कदापि न भरेगा,

मोक्ष - ललना को जिया! कब बरेगा? ।।१।।

 

सुखदाता नहीं मात्र वस्त्र मुंचन,

दुखहर्ता नहीं मात्र केश लुंचन ।

करे राग द्वेष जो धर नग्न - भेष,

वे अहो जिनेश! पावें न सुख लेश।।

आत्मावलोकन अरे! कब करेगा,

मोक्ष - ललना को जिया ! कब वरेगा? ।।२।।

 

करता न प्रमाद, नहीं हर्ष विषाद,

लेता वही मुनि, नियम से निज - स्वाद ।

सुमणि तज काच में, क्यों तु नित रमता?

पी मद, अमृत तज, क्यों भव में भ्रमता?

निज - भक्ति - रस कब, तुझ में झरेगा?

मोक्ष - ललना को जिया! कब वरेगा? ।।३।।

 

तज मूढता त्रय, भज सदा रत्नत्रय,

यदि सुख चाहता, ले ले, झट स्वाश्रय ।

अब ‘‘विद्या" जाग, अरे! शिव - पथलाग,

शीघ्र राग त्याग, बन तू वीतराग ।।

कब तक लोक में, जनम ले मरेगा?

मोक्ष - ललना को जिया कब वरेगा? ।।४।।

 

- महाकवि आचार्य विद्यासागर

 




Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...