Friday, 1 September 2017
Tuesday, 14 March 2017
संत खेले होली मधुवन में
संत खेले होली सघन वन में
अकेले वन में, मधुवन में
आज मची है धूम रंगों की
लगे उत्सव ये रंगों का
इस सघन वन में,मधुवन में
वे बसते है चैतन्य गुफा में
वे रम जाते है अपने में
वे धारण करते है अनन्त गुणों को
रामायो वन में एक ध्यान
आतम राम का
इस सघन वन में,मधुवन में
त्यागा सब घर बार
त्यागे तुमने सब राग-द्वेष
पिघला अहंकार और क्रोध
भागे वैर-विरोध हृदय से
पलायन हुए सब वैरी कर्म
सरल होगया मन का व्यवहार
रम गए तुम आत्म स्वरुप में
इस सघन वन में,मधुवन में
वे रमावे शाश्वत की धुनी
वे रम जावे शाश्वत के आनंद में
ये शाश्वत का धाम है अनूठा
ये शाश्वत का रस है अनूठा
इस रस में वे रम जावे
लौ जलाई चिंतन की ज्वलंत
इस आतम तत्व में
इस सघन वन में,मधुवन में
टल जाती है चार गति
के अनन्त पीड़ा
जब ध्याय आत्मस्वरूप को
बंद हो जाये पुण्य-पाप
चैतन्य गुफा में जब आय
चहिये पूर्ण दशा इस चेतन को
वे रम जाए इस अति आनंद में
ऐसी निर्मल भावना भाई
इस सघन वन में,मधुवन में
में वंदन करता हु बार बार
उनके चरणों में
भावना भाते है हम भी ऐसी
पार लगाये इस भव से
इस सघन वन में,मधुवन में
अकेले वन में, मधुवन में
आज मची है धूम रंगों की
लगे उत्सव ये रंगों का
इस सघन वन में,मधुवन में
वे बसते है चैतन्य गुफा में
वे रम जाते है अपने में
वे धारण करते है अनन्त गुणों को
रामायो वन में एक ध्यान
आतम राम का
इस सघन वन में,मधुवन में
त्यागा सब घर बार
त्यागे तुमने सब राग-द्वेष
पिघला अहंकार और क्रोध
भागे वैर-विरोध हृदय से
पलायन हुए सब वैरी कर्म
सरल होगया मन का व्यवहार
रम गए तुम आत्म स्वरुप में
इस सघन वन में,मधुवन में
वे रमावे शाश्वत की धुनी
वे रम जावे शाश्वत के आनंद में
ये शाश्वत का धाम है अनूठा
ये शाश्वत का रस है अनूठा
इस रस में वे रम जावे
लौ जलाई चिंतन की ज्वलंत
इस आतम तत्व में
इस सघन वन में,मधुवन में
टल जाती है चार गति
के अनन्त पीड़ा
जब ध्याय आत्मस्वरूप को
बंद हो जाये पुण्य-पाप
चैतन्य गुफा में जब आय
चहिये पूर्ण दशा इस चेतन को
वे रम जाए इस अति आनंद में
ऐसी निर्मल भावना भाई
इस सघन वन में,मधुवन में
में वंदन करता हु बार बार
उनके चरणों में
भावना भाते है हम भी ऐसी
पार लगाये इस भव से
इस सघन वन में,मधुवन में
Sunday, 12 March 2017
ये उत्सव है होली का
होली
चलो
होली खेले
सुबह
की भोर से
सूर्य
की पहली किरण से
लगाना
है रंग हरेक को
ये उत्सव
है होली का
आओ,
देखो रे देखो
लाल-गुलाबी
पिले-नील
रंगों
से डूबा है आसमान
हो रही
है चारो और
रंगों
की बौछार
चढा
होली का ऐसा रँग
झूम
रहे है सब मस्ती में
ये तो
उत्सव है होली का
लाओ
रे लाओ
गुलाल
लाओ
टोली
संग खेले होली
कहा
है बाल्टी
कहा
है रंग की पुड़िया
कहा
है पिचकारी
लाओ
जल्दी से
संग
मनना है होली
ये उत्सव
है होली का
लो उमड़
पढ़ी है भीड़
हर गली
गली में
बच्चे-बूढ़ो
क्या जवान
संग
संग खेले होली
कौन
राम, कौन रहीम,
कौन
डेविड, कौन संता
रंग
चढ़ा है एक जैसा
ये तो
उत्सव है होली का
होली
के इस रंग में
बनजाते
है दुश्मन भी दोस्त
दे दो
तुम आहुति नफरत की
बहाओ
प्रेम की धारा
सजेगी
महफिले फिर से रंगोंकी
लगाओ
रंग एक दुजेको
सब चीज
भूल कर
झूम
जाओ मस्ती में
ये उत्सव
है होली का
बड़ों
को आदर
छोटो
को दें प्यार
Happy Holi
Happy Holi
Saturday, 11 March 2017
मिट्टी………!
ना मालूम क्यों
बैठजाता हु
मिट्टी के
बिछोने पर
अक्सर में
ना मालूम क्यों
सौंधी खुशबू
मिट्टी की
भाती है
मेरे मन को
मेरे मन को
ना मालूम क्यों
ये मिट्टी
लगे अपनीसी
कोई कहे लाल तो
कोई कहे काली
कोई कहे उपजाऊ तो
कोई कहे अनमोल
कोई कहे सोना तो
कोई कहे चांदी
मिट्टी फिरभी मिट्टी है
मिट्टी फिरभी मिट्टी है
सुनो कान लगाकर
तुम मिट्टी में
भीतर है अनसुलझे रहस्य
संयम है मिट्टी में
वाणी है मिट्टी में
संगीत है मिट्टी में
जल है मिट्टी में
होनी अनहोनी है मिट्टी में
ये मिट्टी तो आधार है
इस जीवन का
हर किसान आश्रित है मिट्टी पे
हर खेत की वो जान है
खेत सूखते है तो वो रोती है
फसल लहराती है तो वो हस्ती है
शान है वो मेरे गांव की
जोड़े रखती है वो मुझे गांव से
महिमा मिट्टी की
मिट्टी ही जाने
ये संसार मिट्टी का
ये शरीर मिट्टी का
ये मन भी मिट्टी का
तू गूरूर मत कर इतना
इस मिट्टी को एक दिन
मिट्टी में जाना है
मिट्टी ही जाने
ये संसार मिट्टी का
ये शरीर मिट्टी का
ये मन भी मिट्टी का
तू गूरूर मत कर इतना
इस मिट्टी को एक दिन
मिट्टी में जाना है
Thursday, 9 March 2017
साथ हो, तो ऐसा
दोस्ती साथ है तो किसका डर है
दोस्त है तो यह जहाँभी सुन्दर
है
दुश्मन तो कई है हमारे
डर है दोस्त ना रूठ जाये
निभाए दोस्ती ऐसी की
मुश्किल लगे दुनिया छोडना
साथ हो, तो ऐसा दोस्ती का
वक्त के ना आगे हम है
न वक्त हमारे साथ है
वक्त तो वक्त है
अच्छा क्या ख़राब क्या
ख़ुशी में कम तो
गम में ये लम्बा है
ख़ुश रहो तुम
बदलते वक्त के साथ
वक्त का साथ हो, तो ऐसा
उम्र साथ न दे
रिश्ते निभा ना पाए
पूण्य-पाप साथ ना दे
शरीर छूट जाये
कोई गम नहीं
ना छुटे तो धर्म का साथ
ना छुटे तो साधर्मी का साथ
ना छुटे तो जिनवाणी का साथ
ना छुटे तो सच्चे गुरु का साथ
लौ लगाई मन में जो धर्म की
जन्म-मरण के सागर से तर जाये
मेरा ये मनुष्य भव सफल हो जाये
धर्म का साथ हो, तो ऐसा
Saturday, 25 February 2017
क्यों उलझे है कच्चे मन
मन की महिमा
मन ही जाने
पागल है ये मन
बावरा है ये मन
एक है यह मन
जहा चाहे ये मन
वहा लगावे
न है अंकुश कोई
इस मन पर
भागे सरपट ये मन
यहा से वहा
कोई जोर नहीं
इस मन पर
जितना सुलझाऊँ
उतना उलझता है
बच्चो का ये कच्चा मन
रफ़तार है नई नई
जीवन में उनके
चाहत है अववल की
मुश्किल है चलना
इस गुजरते वक्त के साथ
घर करलिया है
मानो इस फेलते तनाव ने
उम्मीद है कही ज्यादा की
इस कच्चे मन से
ये बच्चा है जब तक
कच्चा है समझ से तब तक
कच्चा है रिश्ते नाते से सब
कच्चा है बातो से मुह की
ज्यो ज्यो बढाती है उम्र
त्यों त्यों बदलता है नजरिया
घिर जाता है ये बचपन
पाप के गलियारों में
क्यों उलझ जाता है
ये कच्चा मन बच्चो का
हर बच्चा है अलग
हर सौच है उनकी अलग
हर दृष्टिकोण है उनका अलग
फसा है सुख दुःख के भवर में
जो छाप पड़ेगी इस मन पर
पड़ी रहेगी वो जीवन भर
ये भविष्य है इस देश के
मत लगने दो ग्रहण मासूमियत को
मत खोने दो मन की चंचलता
मत खोने दो उनका भोलापन
मत उलझने दो इस
कच्चे मन को.............!
खुले आसमान में
पंख लगाकर
उड़ने दो
कच्चे मन को.....!
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