Thursday 22 December 2016

poochha nahin parindon se

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लगी शाम ढलने
सुहानी है शाम
निकल रहा वक्त
गूंज रही किलकारी
आसियाने है खाली
परिंदो के इंतजार से
हद है प्रतीक्षा की…….
पूछा नहीं परिंदों से.......

कोई तो पूछो उनसे
कोई तो उन्हें कहो
कोई तो दिखाओ रास्ता
उनके आसियाने का
कही भटक न जाये
इन मेघो में……..
पूछा नहीं परिंदों से....

क्यों है बंजारो की तरह
क्यों नापते है दूरिया
इस नभ से उस नभ तक
ये समझते जहाँ इनका
ये रहते है अपनी धुन में
ये है अपनी ही मस्ती में
पूछा नहीं परिंदों से....

ना है तालीम उड़ानों की
ना है सीमा, ना है बंधन
ना पराया है कोई
ना घड़ी है करते कैसे
ना है जुगाड़ कल का 
ना डर है वक्त का
ना है कोई मज़हब इनका
पूछा नहीं परिंदों से....

कैसे समझते उच्चै आसमानो को
कैस समझते रिश्तो को
कैसे रहते हिल-मिलकर कर
कैसे जानते हवओ के रुख को
कैसे करते अभिव्यक्त भाषा में
कैसे जीते जग में
कोई तो पूछो उन परिंदों से................

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lagee shaam dhalane
suhaanee hai shaam
nikal raha vakt
goonj rahee kilakaaree
aasiyaane hai khaalee
parindo ke intajaar se
had hai prateeksha kee .......
poochha nahin parindon se ....

koee to poochho unase
koee to unhen kaho
koee to dikhao raasta
unake aasiyaane ka
kaheen timir na ho jaaye
kahee bhatak na jaaye
in megho mein ...... ..
poochha nahin parindon se ....

kyon hai banjaaro kee tarah
kyon naapate hai dooriya
is nabh se us nabh tak
ye samajhate jahaan inaka
ye rahate hai apanee dhun mein
ye hai apanee hee mastee mein
poochha nahin parindon se ....

na hai taaleem udaanon kee
na hai seema, na hai bandhan
na paraaya hai koee
na ghadee hai karate kaise
na hai jugaad kal ka
na dar ​​hai vakt ka
na hai koee mazahab inaka
poochha nahin parindon se ....

kaise samajhate uchchai aasamaano ko
kais samajhate rishto ko
kaise rahate hil-milakar kar
kaise jaanate havo ke rukh ko
kaise karate abhivyakt bhaasha mein
kaise jeete jag mein
koee to bata do aasiyaan inaka ................

koee to poochho un parindon se ................

Tuesday 13 December 2016

Pairon Tale Zameen Hai???.....

पैरों तले ज़मीन है???...



सूरज की लाली
चिड़ियों की चहक
फूलो की सुगंध
हवा का झोका
नदी का बहना
यह नज़ारे मन मोहलाते है

फिर भी व्याकुल है मन
ना हाथ में गिल्ली-डंडा, ना सीस पाती 
ना कहानी कहने, ना सुने वाला 
ना खेलते कब्बडी,ना खोखो
ना रसि कुदते, ना जाते क्रीड़ावन
ना ज्ञान है भाषा का, ना संस्कृति का
ना धर्म है, ना शिष्टाचार
मानो संस्कार भी छूट से गए है
बचपन कही खो गया है
दीमक लग गई है उनकी विरासत में
आप मानो या ना मानो
पैरों तले ज़मीन खसकती जा रही है……….

बच्चे भटक गए है राह से
वो कर लेंगे आत्मसात 
मोबाइल, ऐप और इंटरनेट के फॉर्मूले
वो वंचित रहेंगे जिंदगी जीने से    
बैंक बैलेंस तो अथाह होगा
ना होंगे रिश्ते, ना होगी महक रिश्तो की
अभी भी समल जाओ
रोक्लो इस मायाजाल को……….
पैरों तले ज़मीन खसकती जा रही है……….

कर लो प्रतिज्ञा
ये उत्तरदायित्व है आपका 
रूबरू कराओ उनको उनकी विरासत से
देश के भावी खेवनहार है 
दे दो बचपन की महक उनको

पैरों तले ज़मीन खसकती जा रही है……….

Saturday 10 December 2016

में आत्मा हु ???

में आत्मा हु ???





में आत्मा हु ???
में भी शरीर की कैद में हु...
छटपटा रही है आत्मा
मानो पकड़ बहुत मजबूत है 
पर निकल नहीं पाती 

माया की बेड़ियो में
रिश्तो के जंजाल में
मोहब्बत के फ़सानो से
मानो उसे निकल ने नहीं देती

सांसारिक  सुख-दुःख की कल्पना में
राग-द्वेष की आकुलता में
क्रोध-मान में जकड़ा हुआ है
वह परम विशुद्ध है
मानो वह निकल ना नहीं चाहता है

बहुत मुशकिल सवाल है...
में आत्मा हु ???
दिल में उलझता सवाल है ..
में आत्मा हु ???

जवाब है विश्वास करना नहीं चाहता
क्यों  नहीं  समझता 
"शरीर ज्ञेय है"
"आत्मा अनादी अनन्त है"

में नातो शरीर हु, नातो मन हु
में नातो इन्द्रिय हु, नातो पंचतत्व हु
में नातो मित्र हु, नातो रिश्तेदार हु
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु

ना मुझे वेर है, ना प्रेम है
ना मुझे मोह है, ना अभिमान है
ना मुझे मृत्यु का डर है. ना जन्म का
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु

में धर्म से, धन से, लालसा से पृथक हु 
में सभी बंधनो से स्वतंत्र हु
में सिर्फ और सिर्फ शुद्ध चेतन हु
आत्मा तो सिर्फ “ज्ञाता द्रष्टा” होती है


Thursday 6 February 2014

मौत का दामन थामा

मौत का दामन थामा

खुशियों के माहौल में जन्मा 
हर कोई मुझे खिलाया
सबकी चाहत बन जाता 
कभी रोता तो कभी हस्ता
फिर उसी में रम जाता
माँ कि लोरिया सुनते
मेरा बचपन यु ही गुजर जाता
जब से जन्मा
तब से मैंने मौत का दामन थामा

गर्व से इठलाता, यौवन पर
न जाने समझता समझदार
चंद रुपयों की चाह में
ईमान लगाता दाँव पर 
यहाँ रिश्ते बनते बिगड़ते है
फस गया रिश्तों के जाल में
आख मिचौली करता, खुद से
उलझ कर रह गया माया जाल में
यह जवानी बीती जाती
जब से जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

हाथ जोड़, में खड़ा शांत मन से
जीवन बीत रहा है यादों से
धुंधली है यादें
मस्तिष्क थक चुका 
कमर झुक गई है
बुढ़ापा खड़ा सामने
यही लाचारी, यही नियति है
मनो माहौल बदल सा गया है
जब में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

मैं क्यों भूल जाता
में जन्मा, बिछड़ ने के लिए
ये रिश्ते नाते छलावा है
न शरीर तुम्हारा, न तुम शरीर के
में क्यों नहीं समझता    
मौत सत्य है जीवन का 
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा


एक सत्य है इसके अलावा 
में सिर्फ और सिर्फ आत्मा हु 
मे भिन्न हु जन्म मरण से 
मे आत्मा मात्र आत्मा हु
और कुछ नहीं...........
और कुछ नहीं...........

Friday 17 January 2014

क्यों आज मेरा मन उदास है?



क्यों आज मेरा मन उदास है?

क्यों आज मेरा मन उदास है?
नहीं जानता में
क्या कहु ?
किससे कहूँ?

में घिरा हु अपनो से
फिर भी में अकेला हु
जाने क्यों
कैसे में प्यासा भुजाउ
इस विचलित मन से 
इस सूनेपन से
घबराहट सी है मन में 
जाने क्यों
में कमजोर पढ़ गया हु
जैसे अपनी ही नाकामियों से
क्यों दोष देता हु?
क्यों कोसता हु तकदीर को ?
क्यों पाता अकेला खुद से ?
जाने क्यों
सुख कि चाहत है
दुःख से में अनजान हु
फस गया जैसे सुःख-दुःख के भवर में
जाने क्यों
फेला है सपनो का माया जाल
रोज सजते है सपने इन आखो में
कुछ सपने मुकाम पाते है
तो कुछ दम तोड़ देते है 
जाने क्यों
आज मेरा मन उदास है

कब उभरेंगे इस उदास मन से
और कब समलैंगे
क्यों नहीं हम समझ पाते
जिंदगी बहुत छोटी है
वक्त बहुत कम है
मौत सामने खड़ी है
करलो कुछ उद्धार खुद का
न मालूम यह पंछी कब उड़ जायेगा
जाने क्यों
मेरा मन उदास है

Sunday 3 November 2013

दीप का उजाला



दीप का उजाला

एक छोटा सा दीप 
छोटी सी बाती घी से लतपत
मानो जब भी जले
कर देता उजाला जीवन में
उसकी मंद रोशनी
ना जाने क्यों झिलमिलाती है
शांत हो जाता है मन हमारा
दिल को सुकून सा मिल जाता है

ये माटी का दीप
इसकी रचना है कोमल   
जिसके सौन्दर्य को देख
आखों में उजाला आजाता
न मालूम ये है कितना प्राकृतिक
न मालूम ये है कितना धीर
किन्तु यह हमारा मन मोह लेता है

दीप कि लो
पटाखों के जबरजस्त शोर में
हवा के झोके में भी
नहीं डग मगता है
अनार की रोशनी में
भी जरा नहीं सहमता
थोड़ा-सा झुकता है
और फिर तैयार हो जाता है
जगमगाने के लिए
स्नेहदीप के साथ ये
हमारे जीवन को रोशन करता है
मुबारक हो दीपावली का त्यौहार।

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...