Friday, 5 March 2021
Thursday, 4 March 2021
Chuhon Myaun So Rahi Hai in Hindi - NCERT class 1
छत के नीचे,
पाँव पसारे,
पूँछ सँवारे।
देखो कोई,
मौसी सोई,
नासों में से.
साँसों में से।
घर घर घर घर हो रही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
बिल्ली सोई,
खुली रसोई,
भरे पतीले,
चने रसीले।
उलटो मटका,
देकर झटका,
जो कुछ पाओ,
चट कर जाओ।
आज हमारा दूध दही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
मूंछ मरोड़ो,
पूँछ सिकोड़ो,
नीचे उतरो,
चीजें कुतरो।
आज हमारा,
राज हमारा,
करो तबाही,
जो मनचाही।
आज मची है,
चूहा शाही,
डर कुछ भी चूहों को नहीं है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।
***धर्मपाल शास्त्री***
काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है चूहो। म्याऊँ सो रही है। इस कविता में कवि ने एक दिन बिल्ली मौसी के सो जाने पर चूहों को स्वच्छंदतापूर्वक मनमानी करने हेतु ललकारा है। इस कविता में कवि कह रहे हैं कि घर के पीछे तथा छत के नीचे पाँव पसारे, पूँछ सँवारे बिल्ली मौसी सो रही है। उसकी साँसों से ‘घर घर घर घर’ की आवाज़ आ रही है। बिल्ली सोई है और रसोई में खाने-पीने की चीजों से भरे हुए पतीले और रसीले चने रखे हैं। कवि चूहों से कहता है कि झटका देकर मटके को उलट दो तथा जो कुछ मिले, उसे चट कर जाओ। आज तुम्हें किसी बात का डर नहीं है। आज तुम किसी भी चीज़ को कुतर सकते हो। तुम अपनी पूँछ मरोड़ों, पूँछ सिकोड़ों या कितना भी तबाही मचा दो, आज कोई कुछ कहनेवाला नहीं है, क्योंकि आज बिल्ली सो रही है। आज घर पर तुम्हारा ही राज है।
Rasoi Ghar Kavita in Hindi - Class 1 NCERT
मुन्ना-मुन्नी खोल रहे हैं।
अंदर देखा, चकला-बेलन,
चाकू-छलनी बोल रहे हैं।
मैं चाकू, सब्जी-फल काटू,
टुकड़ा-टुकड़ा सबको बाँटू।
गाजर-मूली प्याज-टमाटर,
छीलो काटो रखो सजाकर।
गोल चाँद-सी हूँ मैं थाली,
बज सकती हूँ बनकर ताली।
मुझमें रोटी-सब्ज़ी डाली,
और सभी ने झटपट खा ली।
***मधु पंत***
काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है "रसोईघर" . इस कविता के माध्यम से कवयित्री बड़े ही रोचक शब्दों में रसोईघर की चीजों का वर्णन कर रही हैं। खेलते हुए मुन्ना मुन्नी जब रसोईघर की खिड़की को खोलकर देखते हैं तो पाते हैं कि अंदर चकला-बेलन, चाकू-छलनी आदि बातें कर रहे हैं। चाकू कहता है कि मैं फल और सब्ज़ियाँ काटता हूँ और टुकड़े टुकड़े करके सभी को बाँटता हूँ। गाजर-मूली, प्याज-टमाटर आदि को मैं काटता तथा छीलता हूँ और लोग इसे सजाकर रखते हैं। थाली कहती है कि मेरा आकार गोल चौड़ा-सा है और मैं ताली की तरह बज भी सकती हूँ। मुझमें रोटी-सब्ज़ी डालकर सब झटपट खाते हैं।
Wednesday, 24 February 2021
Prathana - Janisim
हम भोले-भाले बच्चे है,
हाथ जोड़ हम विनती करते,
तुम चरणों में माथा धरते।
गुरुवर! हमको दो वरदान,
हटें न पीछे जो लें ठान,
खेले-कूदें और पढें हम,
अच्छे-अच्छे काम करें हम।।
संकलित - क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज
Moksh - Lalana ko Jiya ! Kab Barega?
मोक्ष - ललना को जिया ! कब बरेगा?
स्वरूप - बोध बिन, सहता दुख निशिदिन,
यदि उसे पाता, तू बन सकता जिन।
नितनिजा - नुमनन कर व्यामोह हनन,
चाहता न मरण यदि न जरा न जनन ।
आशा - गर्त यह कदापि न भरेगा,
मोक्ष - ललना को जिया! कब बरेगा? ।।१।।
सुखदाता नहीं मात्र वस्त्र मुंचन,
दुखहर्ता नहीं मात्र केश लुंचन ।
करे राग द्वेष जो धर नग्न - भेष,
वे अहो जिनेश! पावें न सुख लेश।।
आत्मावलोकन अरे! कब करेगा,
मोक्ष - ललना को जिया ! कब वरेगा? ।।२।।
करता न प्रमाद, नहीं हर्ष विषाद,
लेता वही मुनि, नियम से निज - स्वाद ।
सुमणि तज काच में, क्यों तु नित रमता?
पी मद, अमृत तज, क्यों भव में भ्रमता?
निज - भक्ति - रस कब, तुझ में झरेगा?
मोक्ष - ललना को जिया! कब वरेगा? ।।३।।
तज मूढता त्रय, भज सदा रत्नत्रय,
यदि सुख चाहता, ले ले, झट स्वाश्रय ।
अब ‘‘विद्या" जाग, अरे! शिव - पथलाग,
शीघ्र राग त्याग, बन तू वीतराग ।।
कब तक लोक में, जनम ले मरेगा?
मोक्ष - ललना को जिया कब वरेगा? ।।४।।
- महाकवि आचार्य विद्यासागर
samakit laabh
समकित लाभ
सत्य अहिंसा जहाँ लस रही, मृषा, हिंसा को स्थान नहीं।
मधुर रसमय जीवन वही, फिर स्वर्ग मोक्ष तो यही मही ।।
कितनी पर हत्या हो रही, गायें कितनी रे! कट रहीं ।
तभी तो अरे! भारत मही, म्लेच्छ खण्ड होती जा रही ।।
लालच-लता लसित लहलहा, मनुज-विटप से लिपटी अहा।
भयंकर कर्म यहाँ से हो रहा, मानव दानव है बन रहा ।।
केवल धुन लगी धन, धन, धन, चाहे कि धनिक हो या निर्धन ।
लिखते लेकिन वे साधु जन, वह धन तो केवल पुद्गल कण।।
एकता नहीं मात्सर्य भाव, जग में है प्रेम का अभाव ।
प्रसारित जहाँ तामस भाव, घर किया इनमें मनमुटाव ।।
याचना जिनका मुख्य काम, बिना परिश्रम चाहते दाम ।
सत्पुरुष कहें वे श्रीराम, पुरुषार्थो को मिले आराम ।।
कहाँ तक कहें यह कहानी, कहते कहते थकती वाणी ।
रह गई दूर वीर वाणी, विस्मरित हुई, हुई पुराणी।।
रसातल जा मत दुःख भोगो, मुधा पाप बीज मत बोओ।
हाय! अवसर वृथा मत खोओ, मोह नींद में कब तक सोओ ।।
युगवीर का यही सन्देश, कभी किसी से करो न द्वेष ।
गरीब हो या धनी नरेश, नीच उच्च का अन्तर न लेष ।।
वीर नर तो वही कहाता, कदापि पर को नहीं सताता ।
रहता भूखा खुद न खाता, भूखे को रोटी खिलाता ।।
क्लव यह, करे सद् “विद्याभ्यास” रहे वीर चरणों में खास ।
बस मुक्ति रमा आये पास, प्रेम करेगी हास विलास।।
- महाकवि आचार्य विद्यासागर
Sunday, 21 February 2021
Chhuk-Chhuk Gaadee - Class 1 NCERT
Chhuk Chhuk Gaadee (छुक-छुक गाड़ी)
छूटी मेरी रेल,
रे बाबू, छूटी मेरी रेल।
हट जाओ, हट जाओ भैया!
मैं न जानें, फिर कुछ भैया!
टकरा जाए रेल।
धक-धक, धक-धक, धू-धू, धू-धू!
भक-भक, भक-भक, भू-भू, भू-भू!
छक-छक, छक-छक, छू-छु, छू-छु!
करती आई रेल।
इंजन इसका भारी-भरकम।
बढ़ता जाता गमगम गमगम।
धमधम, धमधम, धमधम, धमधम।
करता ठेलम ठेल।
सुनो गार्ड ने दे दी सीटी।
टिकट देखता फिरता टीटी।
सटी हुई वीटो से वीटी।
करती पलम पेल।
छूटी मेरी रेल।
***सुधीर जी***
काव्यांशों की व्याख्या
प्रस्तुत पंक्तियाँ NCERT Book रिमझिम, भाग-1 से ली गयी है कविता का शीर्षक है ‘छुक-छुक गाड़ी । इसमें कविता में कवी ने अपनी अनोखी रेलगाड़ी का वर्णन किया है।
‘छुक-छुक गाड़ी’ नामक इस कविता में कवी एक ऐसी रेल के बारे में बता रहे हैं, जो स्टेशन से छूट चुकी अर्थात चल पड़ी है। वे लोगों को सावधान करते हुए कहते हैं कि सामने से हट जाओ, क्योंकि मेरी रेल छूट चुकी अर्थात चल पड़ी है और यदि टक्कर हो गई तो मेरी ज़िम्मेदारी नहीं होगी। रेल धक-धक, छू-छु, भक-भक, चू-चू, धक-धक, धू-धू करती आ चुकी है।
कवि कहते हैं कि रेल का इंजन है भारी-भरकम तथा धम-धम, गम-गम करता आगे बढ़ता जाता है। गाड़ी ने सीटी दे दी है तथा टीटी टिकट देखता फिर रहा है एक दूसरे डिब्बे को धकेलती हुई रेल आगे बढ़ रही है। कवि कहते हैं कि मेरी रेल पेलम पेल करती हुई छूट चुकी है।
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