Tuesday 29 October 2013

जैन



जैन


हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे कभी

क्या जान पायेंगे

क्या यह सभी समस्याएं है

आओ विचारें करे हम सब

 

हम आर्य खण्ड के निवासी है

हिमालय जैसा विशाल पर्वत

और गंगाजल जैसी पवित्र नदिया है

मन को सुशोभित करने वाली मनोहर प्रकृति है

यहाँ कई धर्मो का समागम है

और कई वर्णों का मेल है

 

 यह मेरा भारत  देश अधिक उत्कर्ष है

संपूर्ण देशॊ से

यह संतो की भूमि है

यही हमारा गौरव है


यह पुण्य भूमि है, जहा पर जैनी रहते है
अनादिकाल से यहाँ जिन-धर्म की परम्परा है
करोड़ो संतो ने मोक्ष पाया है,
इस पवित्र भूमि से

यह जिन-धर्म है जहा पर
अहिंसा को "अहिंसा परमोधर्म" कहा है 
हिंसा को "जन्म-जन्मान्तरो" में दुखोका,
और कर्मबंध का कारण माना

यह जीव सुख को खोज रहा, जाने बिना
यह पागल हाथी के समान, 
मदमस्त भटक रहा है चारो गतियो में
और संसार के दुष्कर्म में फसता चला जारहा है

इस घोर दुखो से निकालने वाला 
अनंत सुख का मार्ग बताने वाला
एक मात्र धर्म "जिन-धर्म" है
यही धर्म शाश्वत एवं सच्चा धर्म है

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं



ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

 

सूरज का उगना सूरज का ढलना

चाँद का चमकना चाँद का छुपना

 यह द्रश्य मानो मन को अनुपम करता है

उसी तरह जन्म से म्रत्यु और बिच का यह सफ़र

मानो हम से कुछ कहना चाहता हो

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

सुख और दुःख जिंदगी के दो रंग है

यह मुठी में उस रेत के समान है

जो हमेशा मुठी से फिसल जाते है

कभी सदा न रहता जिंदगी में सुख 

रहता सदा न जिंदगी में दुःख कभी

कभी खुशिया छलक पड़ती है

कभी गम आसु बनकर बहजाते है 

कभी थोडा तो कभी ज्यादा

मिलता जरुर है प्रयत्नों से         

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

सुख का आना, दुःख का जाना

मोंत का आना, हमारे हाथ में तो नहीं है

कभी मोंत के आने का इंतजार करते है

तो कभी मोंत बिन बुलाये धमक पढ़ती है

उस को तो बस आना है, आना है ................

ऐ जिंदगी तेरा सफर भी बहुत अनुपम हैं

 

क्यों तु भूल जाता है

यह सफर न मेरा है न तेरा है

यह सफर तो सिर्फ उस शरीर का है

जिस को हम ने अपना माना है

तु पहचान खुद को क्यों भूल जाता है

तु सिर्फ एक मात्र आत्मा ही तो है

शायद इसलिए ऐ जिंदगी तेरा सफर बहुत प्यारा हैं

मेरी माँ



मेरी माँ

 

जब से जाना है माँ को मेने

माँ को हमेशा मेरे पास पाया है 

वो माँ ही तो है

जिस की कोख़ से मेने जन्म लिया

जिस के आचल के साये में

 मेरा बचपन बित गया

और जवान कब हो गया पता ना चला

मेरी माँ, सबसे प्यारी माँ

 

में परीक्षा देता हु रिजल्ट उसका आता है

में मार खाता हु पीड़ा उसे होती है

में गलती करता हु दुखी वह होती है

में खुश होता हु सुखी वह होती है

वो मेरे दुःख-सुख की साथी होती है

मेरी तन्हाई से बेचन हो जाती है

मेरी ख़ामोशी से व्याकुल हो जाती है

वह हर पल मेरे साथ होती है

मेरी माँ, सबसे प्यारी माँ

 

में घर लेट जाता हु तो वह मेरा इन्तजार करती है

में गिर जाता हु तो वह मेरे दर्द से सहम जाती है

में आगे बढ़ता हु तो वह मेरे लिए दुआ मांगती है

में सोता हु तो वह जाग ती है

मुझे परदेश भेज कर वह खुद बहुत रोती है

तवे से गर्म रोटी उतरकर वह मुझे देती है,

खुद ठंडी खाती है

सुई में धागा डालने के लिये,वो मुझे मनाती है

मेरी माँ, सबसे प्यारी माँ

 

वो केसे जाना जाती है

मैं कहाँ हूँ ग़लत और मैं कहाँ हूँ सही

धर्मं के संस्कार भी हमें माँ ही देती है

वह ही तो हमारे जीवन की प्रथम पाठशाला

और वह ही सबसे अच्छी दोस्त होती है

फूल की एक बार खुशबू जा सकती है

माँ के होने की खुशबू जीवन भर रहती है

तेरे प्यार को में कबि न भूल पाऊं

मेरी माँ, सबसे प्यारी माँ

मेरा सपना



मेरा सपना

जब से मेने होश संभाला है
मेने सपनों के बिच घिरा पाया है
न जाने कब से
हर समय नए सपनों को संजोता हु
और बढ़ा चला जा रहा हु
मेने दिल की गहराई से दुआ मांगी है
सपनों के सच होने की

सपना क्या है?
जैसी जैसी रात ढल ती जाती है
सपने अपना रंग दिखाते है
रहस्यमयी दुनिया होती है सपनों की
वो सब दिखा देते है मानो
जिनकी हम ने कल्पना नहीं की थी
हर सपना मानो हम से कुछ कह रहा हो 
कुछ सपने उजाला कर देते है जीवन में
तो कुछ ढकेल देते अंधरी खाई में
जीवन एक स्वप्न है और मृत्यु गहरी नींद

मेरा और सपनों का एक अटूट रिश्ता हो जैसे
न वो मुझे छोडना चाहता है
और ना में उसे छोडना चाहता हु
वक्त का पहिया बढ़ता जा रहा है
जिन्दगी मानो आदि गुजर गई
इन सपनों को पूरा करने में

कही देर न हो जाये
सपनो की दुनिया से बाहर निकल ने में
इस मतलबी दुनिया में मेरा शिकार न  हो जाये
कहीं इन  जैसा   ही    बन  जाऊ में  ..................
कहीं इन  जैसा ही    बन  जाऊ में  ..................

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

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