Wednesday 11 January 2017

सफलता का पैमाना नहीं होता



में चल पड़ा हु
एक अनजान सफर पर
न मालूम कहा है मंजिल
न मालूम कहा है ठिकाना
रहा में न है कोई राही
बस अकेला चलता जा रहा हु

अँधेरा है चारो और
सुनसान है पगडंडी
रुख बदला है हवा का
हलचल है चारो और
सफलता की चाह में
चलता चला जा रहा हु

इस असफलता के दौर में
आसान नहीं है सफलता 
काटे बिछे है राह में
कठिन है रास्ते
जाना है बहुत दूर 
रात काली है पर
किन्तु गहरी नहीं है
इंतजार है सुबह होने का    
सफलता मिलेगी ही मिलेगी 

सफलता मुझे पाना है
अवसर मुझे बनाना है
खोज लूंगा में स्वयं
दृढ है इच्छा शक्ति 
सोच है सकारात्मक
न मिले तो नया बना लूंगा

अहसास है सफलता
अनुभूति है सफलता
नहीं है पैमाना मापने का
न नपी जा सकती है डिग्री से
न पारिवारिक पृष्ठभूमि से
न धन दौलत से न थर्मामीटर से
न कोई यूनिट से न कोई इंस्ट्रूमेंट्स से
न कोई सॉफ्टवेर से
सिर्फ कर सकते है महसूस

एक सफर है सफलता
न है वो लक्ष्य, न है वो शॉर्टकट
न है वो तुक्का, न है वो बुरी आदतें
न है वो प्रतिस्पर्धा, न है वो नकल
निरंतर प्रयास है सफलता
ये सफर चलता चला जा रहा है

जिंदगी


खाली है कुछ पन्ने जिंदगी के
कलम की काली स्याही से
हर रोज भरता हु इन पन्नो को
फिर भी खाली है पन्ने

हर रात उठता हु सौ कर
सुबह के इंतजार में
सोचता हु करूँगा सपने पुरे
एक नया आयाम दूंगा 
फिर व्यस्त हो जाता हु
जिंदगी की राह मे 

बस कट रही है जिंदगी
खुशी के इंतजार में
बेमानी सी है जिंदगी
में जिये जा रहा हु

हम खुश होते है तो
मनोहर है जिंदगी 
हम दुखी होते है तो
दोजख है जिंदगी

मत जियो अधीनता में 
जियो स्वाधीन ता से
जियो मुसकराहट से
जिंदगी आपकी है
तो जियो अपने ही अनदाज में

जिंदगी हाथ में रखी रेत के समान है
जो पल पल फिसल ती जा रही है
जिलो ये जिंदगी हस कर
और मुस्कुराकर
कब ये शाम ढल सी जाए 

में दुआ मांगता हु
इस दिल की गहराही से
ये जिंदगी किसे के काम आ जाए
इस उमीद में जिये जारहा हु 
यही जिंदगी का फलसफा है

Tuesday 10 January 2017

लक्ष्य होता है पूरा, सपना नहीं................

जब से आते है सपने
मेने सपनो के बिच घिरा पाया
न जाने कब से
हर रात संजोता हु नव सपना

सपना होता है सबका अपना
वो गुच्छा है भिन्न-भिन्न कल्पनाओ का
सजा हुआ है भाँति-भाँति के रंगों से
ये नींद उड़ देता है आंखों से
सच्चे होते हैं वो सपना
जो तब्दील होजाये लक्ष्य में

सपनो का बना तु एक ढांचा
सपनो को तु दे एक मंजिल
साकार तु कर मंजिलो को
विचार तु कर, मेहनत तु कर
लक्ष्य तु बनाता जा ................

रख सामने तु लक्ष्य को
न डर अंधी से न तूफान से
न डर खतरों से न रुकावट से
न डर जंजाल से न बोली से
न डर हार से न जीत से
न डर तु स्वयं से
बस तु बढ़ते चलाजा..........................

जब तक न मिले लक्ष्य
न पड़ाव है न थखना है
न घबराना है न झुकना है
न विश्वास खोना है
बिछे हुए है काटे राह में
तु खोफ मत खा
तु मेहनत करता जा
तु बढ़ता चलाजा लक्ष्य की और

पुरे होंगे सपने तेरे
मिलेगी ही मिलेगी कामयाबी
कदम चूमेगी सफलता तेरी
नव पहिचान मिलेगी जीवन को
किस्मत भी देगी तेरा साथ
ईश्वर भी होगा तेरे साथ
तू ले हाथ में मशाल
तु बढे चल लक्ष्य की और
लक्ष्य होगा पुरा आज नहीं तो कल


Monday 9 January 2017

थैंक्यू जिंदगी !

में रहा में चलता चला जा रहा था
कुछ दूर ही चल पाया था
देखा एक सुन्दर महिला को
दिल में अरमान मेरे जगे ही थे        
दुआ की ईश्वर से,उससे मिलने की
में पहुचा ही था उसके पास   
वो महिला उठ खड़ी हुई, बेसाकी के सहारे 
मुझे देखा मुस्कुराई, फिर चलदी रहा में
में स्तब्ध सोचता रहा कुछ समय
उसकी लाचारी को देख, मुस्कुराना भी भूल गया 
हे ईश्वर में उसके जैसा नहीं हु 
मेने अपने को देख, थैंक्स किया जिंदगी को

इसी कश्मकश में
बढ़ा रहा था रेलवे स्टेशन की और
दिखाई दिया एक लड़का
पूछताछ काउंटर पर
व हटा कटा नोजवान था
उसके दिल में उतसाह था 
दे रहा था रेल की जानकारी
मेने भी ली जानकारी
तभी वो उठ खड़ा हुआ
छड़ी के सहारे, वो तो नेत्रहिन् था 
इस अवस्ता को देख, में समझ नहीं पाया
मुह में उंगली दबाकर चला आया
मेरी अपनी दोनों आखो को देख
थैंक्स किया जिंदगी को

इन घटनाओ को देख
मन में कई सवाल है किन्तु जवाब नहीं है
हलचल मच गई मेरे जीवन में
केसी विचित्र विडंबना है
किसको दोष दू
भाग्य को या फिर कर्मो को
ये सवाल उनके जहन में भी होगा
फिर भी जिए जा रहे है उतसाह से
सल नहीं है माथे की लकीरों पर
जोश है उनके दिलो में
हौसला है कुछ कर गुजर ने का
परिचय दिए है आत्मबल का

प्रेरणा लेनी है उनके जीवन से
कभी कमजोर नहीं पड़ना है
डटकर सामना करना है बुराइयो से
फतह हासिल करनी है
जिंदगी के हर मोर्चे पर
खुशकिस्मत हु में भी बहुत
हे ईश्वर मुझे क्षमा करना 

थैंक्स किया जिंदगी को  

Sunday 8 January 2017

खुशियो की भूलभुलैया

तलाश है इस जीव  को
मुकम्मल ख़ुशी पाने की
न जाने कबसे भटक रहा है
कभी उल्टा गर्भ मे कभी चौरसी भटके
कभी इस दर पे कभी उस दर
कभी इस डगर पे कभी उस डगर
कभी इस गली तो कभी उस गली में
कभी इधर से और कभी उधर से
कभी मोह रूपी भवर में फस ता जारहा है
भटक गया है इस संसार में

सरक आई है उसकी तलाश,
मौलिक दुनिया से मायावी दुनिया में
मायावी दुनिया(सोशल मीडिया) के अवतार ने  
मानो खलबली मचादी है संसार में
जीवन का है अभिन्न अंग  
रूबरू होते है रोज उससे
यही तो है मायावी दुनिया

न समझो उसे सिर्फ समाचार पत्र
न समझो उसे रेडियो या न्यूज चैनल
ये तो माध्यम है
संचार का, अभिव्यक्ति का
विचारो का, जान-पहचान का
कमैंट्स का ,शेयरिंग का
तरह तरह के रिश्तो का
जोड़ दिया है हम को एक दूसरे से
लगता है अकेले नहीं है दुनिया में
लगता है खुशियां है चारोओर

ये तो चकाचौंध है मायावी दुनिया का  
ये एहसास है खट्टे मिठे पलो का
ये खुशिया है कुछ समय की
ये दूर कर रही है अपनों को अपनों से
धर्म से, संस्कार से, ईश्वर से  
अजीब विडंबना है
हम बन नहीं पाए पारिवारिक
पर होड़ है सोशल बनने की
ये तो भूलभुलैया है खुशियो की

Saturday 7 January 2017

कितने युवा है आप ??

नही है युवा देह
ये तो अहसास है मन का
ये तो उतसाह है मन का
विभिन्न चरणों में है देह
बाधा नहीं ये चरण 
किन्तु असर है इस मन पर भी
बंद नहीं है खिड़की-दरवाजे
बंद नहीं है विचार
बांधा नहीं है बेड़ियाँ से
इस युवा मन को…………….

खुला है आसमान
खुले है विचार 
जोश है दिल में
साहस है जित ने का
इच्छा है पाने की
लगन है कर दिखने की
विश्वास है खुद पर
इस युवा मन को…………….

जब जब ठान लिया 
दम लिया करके
जिसको माना अपना
लुटा दिया समग्र
न है सोच नकारात्मक
न है बहाना ना करने का
सुखी होता है नई चुनौतियों से
दिखाता है वीरता स्वयं की  
उतसाह है इस युवा मन में………

ना है उसे डर भूत का
लुटता है आगामी को
खूशबु भरता है मौजूदा में
नहीं है वे बाध्य
चलने के लिए पूर्व राह पर
वे निर्मित करते है नई पगडंडी
यही परिवर्तन है जीवन का
समाज का, प्रकृति का 
न रखती है उम्र मायने 
न कोई रुकावट
होगो तुम्हे स्वीकार ना ….

अब नहीं रुकेंगे ये युवा  

Wednesday 4 January 2017

नहीं फुट सकता है अंकुरित बीज

धागा है तो वस्त्र है
आटा है तो रोटी है
प्रेम है तो प्यार है
बीज है तो अंकुरित है
कारण है तो कार्य है
संसार है तो परावर्तन है
कर्म है तो जन्म मरण है
धर्म है तो मोक्ष है
श्रद्धा है तो ईश्वर है
यही तो जिंदगी है
हा जारी रहेगा संसार भ्रमण
अंकुर फूटेगा ही फूटेगा……………

उत्पन्न होगा तभी बीज
जब वह भुना नहीं है,
निर्जीव नहीं है
बेजान नहीं है,
अचेतन नहीं है
कुंठित नहीं है
खोखला नहीं है
अंकुर फूटेगा ही फूटेगा……………


हा नहीं फुट सकता है
जो भुना गया है बीज
अग्नि की ज्वाला में
कर्म की लो में
तपश्चरण धर्म क्रियाओ से
जन्म मरण को जला दिया
कैसे फूटेगा का अंकुर…….
अतएव नहीं फुट सकता !

नहीं आना है संसार में
नहीं चाहिए है नई पर्याय
नहीं अनुभूति है सुख-दुःख
नहीं चक्र है जन्म मरण का
सरे बंधन को त्याग कर
होना है मुक्त स्वयं को स्वयं से
इस मल रूपी कर्म से
प्राप्त करना है मोक्ष को
पुनः नहीं आ सकता संसार में
नहीं फुट सकता है
यह अंकुरित बीज…………..

यह अंकुरित बीज…………..

Jinshaasanashtak ("जिनशासनाष्टक")

  "जिनशासनाष्टक" रत्नात्रयमय जिनशासन ही महावीर का शासन है। क्या चिंता अध्रुव की तुझको, ध्रुव तेरा सिंहासन है ।।टेक॥ द्रव्यदृष्टि स...